जो जानते है वे सुख तो नहीं खोजते, बल्कि दुःख को मिटाने का कोई उपाय करते है। दुःख मिटाया जा सकता है, सुख नहीं पाया जा सकता। और जो सुख पाने में जाएगा वह ज्यादा से ज्यादा दुःख को भुलाने में समर्थ हो सकता है। थोड़ी देर के लिए विस्मरण हो सकता है, थोड़ी देर के लिए भूल सकता है, लेकिन दुःख मिटेगा नहीं। दुःख तो मिटाना है तो दुःख के कारण को जानकार, कारण को नष्ट करने से दुःख नष्ट हो जाएगा और जो दुःख तो नष्ट कर देता है, वह जरूर सुख को उपलब्ध हो जाता है, और जो सुख को खोजता है वह दुःख को कभी नहीं मिटा पाता।
मैं आपसे कहूं, हम सरे लोग सुख खोज रहे है, यह वास्तविक बात नहीं है - वास्तविक खोज नहीं है। हमारी वास्तविक खोज है की हम दुःख को मिटाना चाहते है। लेकिन उस वास्तविक खोज को हम एक भ्रांत मार्ग से पकड़ते है और हमें लगता है की हम सुख को पाना चाहते है।
क्या मैं आपको याद दिलाऊ, दुनिया में दो ही तरह के लोग होते है- एक वे जो सुख को खोजते है, एक वे लोग जो दुःख को मिटाने को खोजते है और यह ज़मीन आसमान का फर्क है दोनों मैं। ये शब्द एक से मालूम हो सकते है। ऊपर से देखने पर ऐसा लगेगा जो सुख को खोज रहा है वह भी वही खोज रहा है, जो दुःख को मिटने को खोजता है वह भी वही खोज रहा है। नहीं, बिलकुल नहीं। ज़मीन और आसमान में भी इतना फर्क नहीं है जितना इन दो बातो में फर्क है।
जो सुख खोजता है, वह दुःख में पड़ जाता है। और जो दुःख को मिटाने को खोजता है, वह सुख को उपलब्ध होता चला जाता है।
क्या कारण है? क्यों हम इस तथ्य को नहीं देखते की हमारे भीतर दुःख है? आप क्यों सुख को खोज रहे हैं? निश्चित ही जब आप सुख को खोज रहे है, यह इस बात का प्रमाण है और सबूत है की आप दुःखी हैं। अगर कोई आदमी दुःखी नहीं है तो सुख को क्या खोजेगा? अगर कोई आदमी निर्धन है तो धन क्यों खोजेगा? इसलिए जो आदमी जितना ज्यादा धन खोजता हो, जानना चाहिए उतना ही गहरा वह निर्धन होगा। नहीं तो क्यों खोजेगा? जो आदमी बीमार नहीं है, वह स्वास्थ्य को क्यों खोजेगा? और जो ज्यादा से ज्यादा स्वास्थ्य को खोजता हो, जानना चाहिए वह उतना ही गहरा बीमार है।
आँखो देखि सांच
ओशो
ओशो
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