अर्द्धनारीश्वर की कल्पना ब्रह्म की कल्पना है। उसमें नारीत्व और
पुरुषत्व आधा-आधा है। वह दोनों है एकसाथ। क्योंकि वह दोनों नहीं है। अगर
पुरुष है तो स्त्रीत्तत्व का इस जगत में कहां से आविर्भाव होगा? अगर वह
स्त्री है, तो पुरुषत्तत्व कहां से आएगा, कहां से शुरू होगा, कहां से पैदा
होगा? वह दोनों ही है। एकसाथ दोनों है। इसलिए दोनों को पैदा कर पाता है।
और हम जब तक स्त्री-पुरुष हैं, तब तक हम परमात्मा के टूटे हुए दो हिस्से
हैं। इसलिए स्त्री-पुरुष का आपसी आकर्षण एक होने का आकर्षण है।
स्त्री-पुरुष का आकर्षण पूरा होने का आकर्षण है। वह आधे-आधे हैं।
अर्द्धनारीश्वर की हमारी कल्पना और हमारी प्रतिमा बड़ी अनूठी है। दुनिया ने
बहुत प्रतिमायें बनाई हैं, लेकिन अर्द्धनारीश्वर में जो बहुत मनोवैज्ञानिक
सत्य है, उसका कोई मुकाबला नहीं है। अर्द्धनारीश्वर में हम इतना ही कह रहे
हैं कि परमात्मा दोनों हैं, एक-साथ, और पूरा है। एक पहलू उसका स्त्रैण है,
एक पहलू उसका पुरुष है। या ऐसा कहें कि वह दोनों का सम्मिलन है, दोनों का
मध्य है; दोनों का “बियांड’ है, दोनों का पार है।
यह जो मैंने कहा कि परमात्मा को, ब्रह्म को, यह जो मध्य की स्थिति है, जीसस
ने एक बहुत अच्छा शब्द उपयोग किया है, “यूनक ऑफ गॉड’। जीसस ने कहा है कि
जिसे प्रभु को पाना है, उसे प्रभु के लिए नपुंसक हो जाना पड़ेगा। बड़ी अजीब
बात कही है। पर कही बिलकुल ठीक है। जिसे प्रभु को पाना है, उसे प्रभु जैसा
होना ही पड़ेगा। इसलिए बुद्ध अपनी पूरी गरिमा में, या कृष्ण अपनी पूरी गरिमा
में न स्त्री हैं, न पुरुष हैं। अपनी पूरी गरिमा में वे दोनों हैं। अपनी
पूरी गरिमा में वे मिश्रित हैं। अपनी पूरी गरिमा में एक अर्थ में वे
“ट्रांसेंडेंटल सेक्स’ हैं, वे पार हो गए दोनों द्वंद्वों के और दोनों के
बाहर हो गए। लेकिन हमारे बीच द्वंद्व है। मात्राओं का द्वंद्व है।
यह जो मैंने कहा कि परमात्मा को, ब्रह्म को, यह जो मध्य की स्थिति है,
जीसस ने एक बहुत अच्छा शब्द उपयोग किया है, “युनक ऑफ गॉड’। जीसस ने कहा
है कि जिसे प्रभु को पाना है, उसे प्रभु के लिए नपुंसक हो जाना पड़ेगा। बड़ी
अजीब बात कही है। पर कही बिलकुल ठीक है। जिसे प्रभु को पाना है, उसे प्रभु
जैसा होना ही पड़ेगा। इसलिए बुद्ध अपनी पूरी गरिमा में, या कृष्ण अपनी पूरी
गरिमा में न स्त्री हैं, न पुरुष हैं। अपनी पूरी गरिमा में वे दोनों हैं।
अपनी पूरी गरिमा में वे मिश्रित हैं। अपनी पूरी गरिमा में एक अर्थ में वे
“ट्रांसेंडेंटल सेक्स’ हैं, वे पार हो गए दोनों द्वंद्वों के और दोनों के
बाहर हो गए। लेकिन हमारे बीच द्वंद्व है। मात्राओं का द्वंद्व है।
और जो उन्होंने पूछा कि जो हमारे बीच “थर्ड सेक्स’ पैदा होता है कभी,
उसका क्या कारण है? उसका वही कारण है। अगर उसके भीतर “फिजियोलाज़िकली’,
शारीरिक तल पर दोनों तत्व समान रह गए, तो उसका लिंग विकसित नहीं हो पाता
किसी भी दिशा में। उसकी जाति ठीक से विकसित नहीं हो पाती। दोनों बराबर
समतुल शक्तियां एक-दूसरे को काट जाती हैं। यह भी संभव हो गया है, पहले तो
कभी-कभी आकस्मिक होता था कि कोई स्त्री बाद के जीवन में पुरुष हो गई, या
कोई पुरुष बाद में स्त्री हो गया।
अर्द्धनारीश्वर इस बात की सूचना है कि विश्व का मूलस्रोत न तो स्त्री है न
तो पुरुष है। वह दोनों एकसाथ हैं। लेकिन क्या मैं आपसे यह कहूं कि वह जो
“इम्पोटेंट’ हैं, नपुंसक है, वह परमात्मा के ज्यादा निकट पहुंच जाएगा? यह
मैं नहीं कह रहा हूं। परमात्मा दोनों हैं और नपुंसक दोनों नहीं हैं।
इस फर्क को आप खयाल में ले लेना।
परमात्मा दोनों हैं एकसाथ, और जिसे हम नपुंसक कहें, वह दोनों नहीं है।
नपुंसक हमारा सिर्फ अभाव है, “एब्सेंस’ है। और परमात्मा भाव है, “प्रेजेंस’
है। परमात्मा में स्त्री और पुरुष दोनों हैं। इसलिए अर्द्धनारीश्वर की
प्रतिमा है, उसमें आधी स्त्री है, आधा पुरुष है। हम परमात्मा को नपुंसक
जैसा भी बना सकते थे, जिसमें न स्त्री होती, न पुरुष होता; लेकिन वह अभाव
होता। परमात्मा दोनों का भाव है, दोनों की “पाज़िटिविटी’ है। और जिसे हम
नपुंसक कहते हैं, वह बेचारा दोनों का अभाव है। उसके पास कोई व्यक्तित्व
नहीं है, इसलिए उसकी पीड़ा का कोई अंत नहीं है। इसलिए जब जीसस कहते हैं,
“यूनक ऑफ गॉड, तब वह बिलकुल कह रहे हैं कि परमात्मा में, परमात्मा के लिए
वे न स्त्री रह जाएं, न पुरुष हो जाएं; और तब वे दोनों रह जाएंगे, दोनों
हो जाएंगे।
कृष्ण स्मृति
ओशो
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