आपने संन्यास को उठा हुआ पहला कदम कहा। क्या यह कदम उठा ही रहेगा, या मंजिल भी मिलेगी?
अगर उठ गया तो पहले ही कदम में भी मंजिल मिल सकती है। सवाल है उठने का।
क्योंकि परमात्मा तुम्हारे दूर थोड़े ही है कि बहुत कदम उठाने पड़ेंगे।
परमात्मा तो पास से भी पास है। सच तो यह है, एक भी कदम उठाने की जरूरत
नहीं है, क्योंकि परमात्मा तुम्हारे भीतर बैठा है। यह कदम उठाने की बात
तो प्रतीकात्मक है। यह तो सिर्फ इस बात की खबर है कि तुमने हिम्मत की,
तुमने चुनौती स्वीकार की, तुमने कहा मैं राजी हूं।
तुम अगर राजी हो तो परमात्मा तो सदा से राजी था कि तुम्हें मिल जाए।
उसने तो कभी इनकार न किया था, उसके द्वार तो कभी बंद न थे। मंजिल तो सामने
है, तुम्हीं इधर उधर देखते थे। तुम सामने चूककर और सब जगह देखते थे। निकट
को हम देखते ही नहीं, दूर पर हमारी आंखें पड़ती हैं। पास को हम भूल ही जाते
हैं। दूर कि बातें हमें सुहावनी लगती हैं दूर के ढोल सुहावने।
मुल्ला नसरुद्दीन अदालत में बुलाया गया, क्योंकि उसके पड़ोस में एक हत्या
हो गयी। उसने गवाही दी। उसने कहा कि मेरे घर से कम से कम एक फर्लांग दूर
यह हत्या हुई। इस हत्यारे ने छलांग मारकर इस आदमी की छाती में छुरा भोंक
दिया।
एक फर्लांग दूर! मजिस्ट्रेट ने पूछा। और सूरज ढल चुका था, तुम कहते हो।
और सांझ उतरने लगी थी और अंधेरा उतरने लगा था, एक फर्लांग दूर तुम देख सके?
तुम कितनी दूर तक देख सकते हो, यह बोली? अंधेरे में कितनी दूर तक देख सकते
हो? मुल्ला ने कहा कि अब यह तो बड़ा मुश्किल है। ऐसे तो मैं चांद—तारे भी
देखता हूं। दूर की तो कुछ न पूछो। लेकिन चांद तारे देखना एक बात है।
एक स्त्री के संबंध में मैंने सुना, वह किसी के प्रेम में पड़ गयी। जिसके
प्रेम में पड़ गयी, वह एक युवक था। स्त्री तो काफी उम्र की थी, कोई
पैंतालीस साल की थी। लेकिन बताती वह अपने को तीस ही साल की थी। स्त्रिया
अक्सर रुक जाती हैं। एकाध वर्ष उनको जंच जाता है, फिर वे वहां से आगे नहीं
बढ़ती। पसंद पड़ गया है, फिर क्या बढ़ना आगे! क्या बार बार बदलना!
तो वह तीस पर रुक गयी थी सो रुकी थी। एक जवान आदमी के उम्र ज्यादा नहीं
थी, मुश्किल से पच्चीस साल होगी उसके प्रेम में थी। सिर्फ अड़चन उसे एक बात
की आती थी कि आंखें उसकी कमजोर हो गयी थीं। स्त्री की आंखें कमजोर हो गयी
थीं। लेकिन वह चश्मा भी नहीं लगाती थी, क्योंकि चश्मा लगाने का मतलब, लोग
समझेंगे की हो गयी। तीस साल की जवान वह अपने को मानती थी।
एक बार अदालत में उस पर मुकदमा था, तो मजिस्ट्रेट ने कहा कि देवी, कम से
कम तीन बार तो मैं ही सुन चुका हूं दस वर्ष के समय में कि तेरी उम्र तीस
साल है। दस वर्ष पहले भी तू अदालत में आयी थी तब भी तीस साल थी, अब भी तीस
साल है! तो उस स्त्री ने कहा, महाशय, जो बात एक दफे कह दी, कह दी। अब कोई
बार बार बदलने की जरूरत! मैं कभी असंगत वक्तव्य देती ही नहीं।
इस युवक के प्रेम में थी, सब तरह सिद्ध करने की कोशिश कर रही थी कि
बिलकुल जवान है, सिर्फ उसको यह डर था आंख का। आंख ही सिद्ध करने की बात थी
कि खराब नहीं है। कहीं इसको पता न चल जाए! क्योंकि उसको बिलकुल सामने का भी
नहीं दिखायी पड़ता था। कभी कभी युवक भी सामने बैठा रहता तो भी उसे गौर से
देखना पड़ता था, वही है न! किसी और से तो बातें नहीं चल रही हैं!
तो उसने सिद्ध करने के लिए एक तरकीब खोजी। उसने अपनी हीरे की अंगूठी एक
झाड़ पर जाकर रख दी, जहां झाडू की दो बड़ी शाखाएं अलग होती थीं होगा कोई जमीन
से पांच फीट ऊपर वहां जाकर उसने रख दी। फिर युवक को लेकर बगीचे में घूमने
गयी। फिर काफी दूर से कोई सौ कदम दूर से उसने युवक से कहा, अरे देखते, मैं
अपनी अंगूठी, मालूम होता है, उस झाडू के पास भूल आयी। वह अंगूठी रखी है,
हीरा चमक रहा है। युवक ने कहा, मुझे तो दिखायी नहीं पड़ता। छोटा सा हीरा,
झाड़ पर रखा है! उसने कहा, तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता! वह झाडू पर, मैं अभी
उठाकर लाती हूं।
वह गयी और सामने खड़ी थी एक भैंस, उस पर गिर पड़ी। वह भैंस दिखायी न पड़ी!
क्रमशः
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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