यह सूत्र याद रखें। मन की मालकियत तोड़नी है: साक्षी भाव से टूटेगी,
फासला बनेगा। स्वयं की मालकियत सिद्ध करनी है, लेकिन विरोध में जाने से
नहीं, ऊपर उठने से। स्वतंत्रता आएगी; अगर विरोध में जाने से आई तो झूठी
होगी। उस स्वतंत्रता में तनाव और परेशानी होगी। वह शांत नहीं होगी। वह सहज
नहीं होगी। ऊपर जाने से, साक्षी बनने से, लड़ने से नहीं; धर्म में योद्धा की
जगह ही नहीं है। धर्म में सिर्फ ऊपर उठना है। लड़ना नहीं, क्योंकि जिससे
तुम लड़े, तुम वहीं रुक जाओगे, उसी के तल पर। मन को शत्रु नहीं बनाना है; मन
के पार जाना है, अतिक्रमण करना है।
और, मन के पार जाने का सूत्र है : साक्षी भाव। जैसे तुम ऊपर गये, सहज
स्वतंत्रता स्पाटेनियस फ्रीडम घटित होगी, मुक्तता घटित होगी। और उस मुक्तता
का कोई विरोध नहीं है किसी से। ऐसी मुक्ति में तुम उस दशा में पहुंच
जाओगे, जहां अपने से बाहर भी रहो, भीतर भी रहो, कोई फर्क नहीं पड़ता;
क्योंकि बाहर भीतर का फासला ही गिर गया। संसार और मोक्ष एक हैं। सब द्वैत
समाप्त हो गया, सब द्वंद्व खो गया; अद्वंद्व और अद्वैत की स्थिति आ गयी!
शिव सूत्र
ओशो
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