कभी आपने खयाल किया कि अगर आपके बच्चे जैसे ही ‘सेक्यूअली मेच्योर’ होते
हैं, वैसे ही उनके जीवन में अस्त व्यस्तता और परेशानी और उपद्रव और विरोध
और विद्रोह और हर चीज में जिद्द और हर चीज से झगड़ा और हर चीज से छूटने की
कोशिश और कुछ भी न मानने की वृत्ति खड़ी होनी शुरू हो जाती है? किसी को न
मानने की। किसी का आदर न करने की। वह स्कूल शरीर का स्वाभाविक परिणाम है।
ऐसे बूढ़ा भी तीन शरीरों को पुन: उपलब्ध होता है। मरने के पहले फिर के का
स्थूल शरीर सबसे पहले नष्ट होने लगता है। जवानी समाप्त होती है उसी दिन,
जिस दिन हमें पता चलता है हमारा स्कूल शरीर क्षीण होने लगा। लेकिन, स्थूल
शरीर क्षीण हो जाए, लेकिन वासना क्षीण नहीं होती, क्योंकि वासना सूक्ष्म
शरीर का हिस्सा है, स्वप्र शरीर का हिस्सा है। इसलिए बूढ़े की तकलीफ एक ही
है। वह तकलीफ यह है कि उसके पास वासना वही होती है जो जवान के पास होती है
और शरीर उसके पास जवान का नहीं होता। उसकी पीड़ा भारी हो जाती है। इसलिए
बूढ़े अक्सर जो जवानों के प्रति इतना.? इतनी निंदा से भरे रहते हैं और इतनी
आलोचना से भरे रहते हैं और इतने सिद्धांत और तर्क और सिर्फ शिक्षाएं देते
रहते हैं, उसका गहरा कारण उनकी बुद्धिमत्ता नहीं है, उसका गहरा कारण सौ में
निव्यानबे मौके पर उनकी ईर्ष्या है। वासना उनके मन में भी वही है, लेकिन
शरीर क्षीण हो गया है। स्थूल शरीर साथ नहीं देता।
फिर इसके बाद उनका रूप शरीर क्षीण होना शुरू होता है। जब बूढ़े का स्वप्र
शरीर क्षीण होता है, तब उसकी स्मृति प्रभावित हो जाती है। तब चीजें उसे
याद नहीं आतीं। असंगत हो जाता है, तर्क खो जाता है। अभी कुछ कहता है, घड़ी
भर बाद कुछ कहने लगता है संगति नहीं रह जाती। स्वप्र शरीर क्षीण होने लगा।
और जब स्वप्र शरीर क्षीण हो जाता है, तब फिर सुषुप्ति में मृत्यु घटित होती
है। मृत्यु में सुषुप्त शरीर भी क्षीण होता है। लेकिन समाप्त नहीं होता
है। और इन तीनों शरीरों की वासना लेकर सुषुप्त शरीर, कारण शरीर नयी यात्रा
पर निकल जाता है। वह बीज की तरह। फिर नया जन्म, फिर नयी यात्रा, फिर वही
खेल, फिर वही चक्कर। अब यह सूत्र को हम समझें।
‘पिछले जन्मों के कर्मों से प्रेरित होकर वह मनुष्य खप्त अवस्था से पुन:
स्वप्र व जाग्रत अवस्था में आ जाता है। ‘पिछले जन्मों के कर्मों से
प्रेरित हुआ वह मनुष्य सुषुप्त अवस्था से पुन: स्वप्र और जाग्रत अवस्था में
आ जाता है’। जब भी कोई नया व्यक्ति पैदा होता है तो पिछले जन्मों के सारे
कर्मों को, प्रभावों को, संस्कारों को लेकर सुषुप्त से पैदा होता है। फिर
स्वप्र में आता है, फिर जाग्रत में आ जाता है। नया जीवन शुरू हो जाता है।
‘इस तरह से ज्ञात हुआ कि जीव तीन प्रकार के शरीरों में स्थूल, सूक्ष्म
और कारण में रमण करता है। उसी से सारे मायिक प्रपंच की सृष्टि होती है ‘।
यह जीवन का सारा का सारा प्रपंच इन तीन शरीरों पर निर्भर है। इन तीन शरीरों
को इस सूत्र में पुर कहा है। तीन पुर। और इसलिए भारतीय जो शब्द है आला के
लिए, वह पुर है। पुरुष का मतलब है, पुर के भीतर रहनेवाला। और ये तीन उसके
नगर हैं, ये तीन उसके पुर हैं स्थूल, सूक्ष्म और कारण। इन तीन में वह पुरुष
रमण करता रहता है। यह तीन उसकी नगरिया हैं, जिनमें वह एक से दूसरे में
यात्रा करता है। जब तीन प्रकार के शरीरों का लय हो जाता है, तभी यह जीव
मायिक प्रपंच से मुक्त होकर अखंड आनंद का अनुभव करता है। जब ये तीनों शरीर
लीन हो जाते हैं।
केवल्य उपनिषद
ओशो
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