मनुष्य स्वतंत्र है। और परमात्मा के होने की यह घोषणा है। और मनुष्य जो
चुनना चाहे, चुन सकता है। यदि मनुष्य ने दुख चुना, तो चुन सकता है। जिंदगी
उसके लिये दुख बन जायेगी। हम जो चुनते हैं, जिंदगी वही हो जाती है। हम जो
देखने जाते हैं, वह दिखायी पड़ जाता है। हम जो खोजने जाते हैं, वह मिल जाता
है। हम जो मांगने जाते हैं, वह’ फुलफिल’ हो जाता है, उसकी पूर्ति हो जाती
है।
दुख चुनने जायें, दुख मिल जायेगा। लेकिन, दुख चुनने वाला आदमी अपने लिये
ही दुख नहीं चुनता। वहीं से अनैतिकता शुरू होती है। दुख चुनने वाला आदमी
दूसरे के लिये भी दुख चुनता है! यह असंभव है कि दुखी आदमी और किसी के लिये
सुख देने वाला बन जाये। जो लेने तक में दुख लेता है, वह देने में सुख नहीं
दे सकता। जो लेने तक में चुन चुन कर दुख को लाता है, वह देने में सुख देने
वाला नहीं हो सकता।
यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि जो हमारे पास नहीं है,
उसे हम कभी दे नहीं सकते हैं। हम वही देते हैं जो हमारे पास है। यदि मैंने
दुख चुना है, तो मैं दुख ही दे सकता हू। दुख मेरा प्राण हो गया है। जिसने
दुख चुना है, वह दुख देगा।
इसलिये दुखी आदमी अकेला दुखी नहीं होता, अपने
चारो तरफ दुख की हजार तरह की तरंगें फेंकता रहता है। अपने उठने बैठने,
अपने होने, अपनी चुप्पी, अपने बोलने, अपने कुछ करने, न करने, सबसे चारों
तरफ दुख के वर्तुल फैलाता रहता है। उसके चारों तरफ दुख की उदास लहरें घूमती
रहती हैं और परिव्याप्त होती रहती हैं। तो जब आप अपने लिये दुख चुनते हैं
तो अपने ही लिये नहीं चुनते, आप इस पूरे संसार के लिये भी दुख चुनते हैं।
तो जब मैंने कहा कि दुख के चुनाव ने मनुष्य को युद्ध तक पहुंचा दिया है।
और रेले युद्ध तक, जो कि’ टोटल आइड’ बन सकता है, जो कि समग्र आत्मघात बन
सकता है। यह मनुष्य के दुख का चुनाव है जो हमें उस जगह ले आया। हमने सुना
है बहुत बार, जानते हैं हम कि कभी कोई आत्मघात कर लेता है, लेकिन हमें इस
बात का खयाल नहीं था कि दूखी आदमी आत्मघात कर लेता है यह तो ठीक ही है, एक
रेला वक्त भी आ सकता है कि पूरी मनुष्यता इतनी दुखी हो जाये कि आत्मघात कर
ले।
हमारे बढ़ते हुये युद्ध आत्मघात के बढ़ते हुये चरण हैं। यह दुख के चुनाव
से संभव हुआ है। और दुख को जब हम धर्म की तरह चुन लेते हैं, तो फिर अधर्म
की तरह चुनने को कछ बचता भी नहीं है। जब दुख को हम धर्म बना लेते हैं, तो
फिर अधर्म क्या होगा? जब दुख धर्म बन जाता है, तो गौरवान्वित भी हो जाता
है।’ ग्लोरीफाइड’ भी हो जाता है।
कृष्ण स्मृति
ओशो
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