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Saturday, August 29, 2015

रक्षाबंधन


(ओशो जब बहन निशा के घर आए तो उनकी चप्पल बहन से संभाल के रख ली, जो अभी भी उनके पास है।)
 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में जन्म लेने वाले आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश से जुड़ी कई ऐसी घटनाएं हैं, जो उनके परिवार के लोगों से बेहतर कोई नहीं बता सकता। ओशो रजनीश के 10 भाई-बहनों में आठवें नंबर की निशा भारती आज भी जबलपुर के मनमोहन नगर में रहती हैं। निशा ने भी ओशो से दीक्षा ली थी। ओशो निशा से मिलने उनके घर गए थे तो उन्होंने जो चप्पल पहनी थी वो आज भी निशा ने सहेज कर रखी हैं। ये बात तब की है जब निशा ओशो से दीक्षा ले चुकी थीं। 

निशा बताती हैं कि 8 अगस्त 1979 को पूना में पिता अस्पताल में भर्ती थे, इसी दिन रक्षाबंधन भी था और पूरा परिवार अस्पताल में था मां ने कहा कि सब भाइयों को यहीं राखी बांध दो। लेकिन ओशो अस्पताल में नहीं, अपने आश्रम में थे। तब निशा आश्रम पहुंची, लेकिन आश्रम में इतनी कड़ी सुरक्षा होती थी कि आप कुछ भी नहीं ले जा सकते थे। बड़ी मुश्किल से वे रूमाल में एक छोटी राखी छुपाकर ले गईं। 
सबसे पहले ओशो ने उनसे यही पूछा कि दद्दा को देखने गई थीं, उन्होंने हां में जवाब दिया और फिर अपने भाई ओशो से कहा कि मैं राखी बांधना चाहती हूं, तभी वहां खड़े ओशो के बॉडीगार्ड ने अचानक उन्हें रोक दिया, मेरी आंखों में आंसू देखकर ओशो ने गार्ड को पीछे हटने को कहा और हाथ आगे बढ़ाकर राखी बंधवाई। यह बड़ा भावुक पल था। उसी दिन छोटी बहन ने भाई ओशो से जिद की कि वह आज ही उनसे दीक्षा लेगी। काफी देर तक मना करने के बाद ओशो मान गए और उन्हें संन्यास धारण करने की आज्ञा दे दी। वे कहती हैं कि ओशो काफी शांत स्वभाव के थे, कम बोलते थे और अक्सर वे ध्यान में हुआ करते थे। 
निशा आगे बताती हैं कि रजनीश चंद्र मोहन ओशो उनसे 18 साल बड़े थे और जब उन्होंने होश सम्हाला तब तक वे मशहूर आचार्य रजनीश हो चुके थे। निशा ने हमेशा उन्हें साधु जैसा ही देखा है। वे घर पर अक्सर लुंगी व चादर में ही होते थे। निशा बताती हैं कि ओशो जब गाडरवारा आते थे तो पूरा परिवार इकट्ठा हो जाता था। वे अक्सर घर पर ही खाना खाते थे और उनके खाना बनाने का जिम्मा हम बहनों के पास होता था। वे याद करती हैं कि एक बार खाना परोसते वक्त जब वे उदास हो गईं तो ओशो ने उनसे उदासी का कारण पूछा। 
तब उन्होंने कहा कि निकलंक भाई कह रहे हैं कि खाना अच्छा नहीं बना है इस पर ओशो ने निकलंक भाई को डांटते हुए कहा कि आज का खाना तो निशा ने वाकई बहुत अच्छा बनाया है। वे बताती हैं कि ओशो ने ही दो भाई निकलंक और अकलंक की पढ़ाई का पूरा खर्चा खुद उठाया। निशा जब कॉलेज में दाखिला ले रही थीं तो ओशो ने ही उन्हें डिग्री कॉलेज में पढ़ने के लिए कहा और बोले कि ट्यूशन बच्चे जाते हैं, छात्र स्कूल और कॉलेज जाते हैं।
ऐसा ही एक वाक्या बताते-बताते निशा जी की आंखें भर आईं, उन्होंने बताया कि यह बात सन् 1979 की है, बच्चों के कारण वे ध्यान नहीं लगा पाती थीं और इसी बात को लेकर वे परेशान थीं तभी वे पूना चली गई और उनका चेहरा देखते ही ओशो ने उनसे परेशानी का कारण पूछा और कहा कि परेशान मत हो दो साल में सब ठीक हो जाएगा और वाकई में दो साल में सब कुछ ठीक हो गया और उसके बाद उन्होंने गुरु दीक्षा अपने भाई (ओशो) से ली। 
ओशो के पिता देवतीर्थ भारती और मां अमृत सरस्वती की दूसरी पुत्री रसा फौजदार (मां योग भारती) होशंगाबाद में रहती हैं इसके अलावा उनके भाई विजय भारती, स्वामी अकलंद भारती इंजीनियर, पांचवे नंबर की उनकी बहिन मां स्नेह भारती, छठवें नंबर के भाई निकलंद भारती हैं, सातवीं बहिन मां प्रेम नीरू, निशा भारती, फिर स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती और दसवें नंबर के भाई जो सबसे छोटे हैं स्वामी अमित भारती हैं। 
 Women in India mostly wear a sari for the lower part of the body and a blouse for the upper part. As it happened, it was ‘Rakhi day’ when sisters tie a thread around the right wrist of her brothers. Nisha succeeded to pass through all checks with a thread hidden under her blouse because nothing was allowed to be taken into the auditorium. When her name was called she went upfront and bowed down on the ground in front of Osho.

After sitting down she took out the hidden thread and wanted to wrap and tie it around Osho’s wrist. Laxmi asked her not to do it. The guard made frantic hand gestures not to do it. Meanwhile Osho smiled and asked them not to prevent her and reached out his arm and Nisha, though trembling out of love and reverence, contentedly tied the thread loosely around Osho’s wrist.

Then Osho asked, “What do you want?” Nisha hadn’t gone to take sannyas otherwise she would have been dressed in orange clothes but in that moment she said, “Sannyas.” Osho asked her to wait and to first let her family members (husband and his parents) be ready for it otherwise she would be in trouble. But Nisha said, “I want sannyas. There will be no trouble.”
Osho is being handed the .

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