मैंने पूछा यह किसलिए? तो वह कहता है कि मैं एक में असली सिक्के डालता हूं, दूसरे में नकली सिक्के। हर साल खोलता हूं। तो मैंने कहा, अब की बार तुम जब खोलो तो मैं मौजूद रहूंगा। उसने खोला, गुल्लक तोड़े, तो सब सिक्के जिसमें वह नकली सिक्के डालता, उसी गुल्लक में निकले। असली सिक्केवाला गुल्लक तो खाली निकला। मैंने कहा, मामला क्या है? क्या सभी सिक्के नकली हैं? उसने कहा कि जो हमने नहीं ढाला वह असली कैसे हो सकता है? अगर ये ही सिक्के मैंने ढाले होते अपने घर में, तो सब असली गुल्लक में होते। दूसरों के ढाले सिक्के असली हो कैसे सकते हैं? सब नकली हैं।
दूसरे जो कहते हैं, दूसरों के कहने के कारण ही तुम कहने लगते हो असत्य। तुम जो कहते हो, तुम्हारे कहने के कारण ही कहने लगते हो सत्य।
सत्य की यह पूजा न हुई। सत्य का तो यह बहुत अपमान हुआ। सत्य तुमसे बड़ा है। तुम सत्य से बड़े होने की चेष्टा करोगे, मिथ्यात्व होगा।
तुम जैन घर में पैदा हुए तो तुम कहते हो, जैन धर्म सही है। तुम अगर हिंदू घर में पैदा होते तो यही तुम हिंदू धर्म के संबंध में कहते। तुम अगर मुसलमान घर में पैदा होते तो यही तुम इस्लाम के संबंध में कहते।
तो न तो तुम्हें इस्लाम से कुछ मतलब है, न जैन से, न हिंदू से। तुम जहां पैदा हुए वहीं सत्य को भी पैदा होना चाहिए। जैसे तुम्हारे होने में सत्य का कोई ठेका है!
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