Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Monday, August 24, 2015

शुभ क्या है और अशुभ क्या है? फिर शुभाशुभ के पार क्या है?

शुभ का कोई संबंध नीति से नहीं है। नीतियां अनेक हैं, शुभ एक है। हिंदू की नीति एक, मुसलमान की नीति दूसरी, जैन की नीति तीसरी। इसलिए नीतियां तो मान्यताएं है। बदलती रहती हैं। उनका कोई शाश्वत मूल्य नहीं है। जो कल अनैतिक था, आज नैतिक हो सकता है। जो आज नैतिक है, कल अनैतिक हो जाएगा।
जैसे, महाभारत युधिष्ठिर को धर्मराज कहता है, और धर्मराज जूआ खेलने में जरा भी संकोच अनुभव नहीं करते। जूआ अनैतिक नहीं था। उन दिनों जूआ नैतिक था। धर्मराज के धर्मराज होने में जूआ खेलने से कोई बाधा नहीं आती। और छोटे मोटे जूआरी भी न रहे होंगे, सब लगा दिया ,सब ही नहीं लगा दिया, पत्नी भी लगा दी। पत्नी कोई संपत्ति नहीं है, पत्नी के पास उतनी ही आत्मा है जितनी पति के पास। किसी को कोई हक नहीं है कि पत्नी को या पति को दाव पर लगा दे। दाव पर लगाने का मतलब है कि पत्नी के बेचने का हक था। इस देश में तो लोग ही कहते है-स्त्रीसंपत्ति। यह बड़ी अनैतिक बात है आज। आज धर्मराज को धर्मराज कहना बहुत मुश्किल होगा। अगर धर्मराज धर्मराज हैं तो फिर अधर्मराज कौन? यह बात ही बेहूदी है, असंस्कृत है, पर उस दिन स्वीकार थी, कोई अड़चन न थी।

आज जो नैतिक है, कल अनैतिक हो जाएगा। नीति बदलती है। इसलिए नीति के साथ शुभ को एक मत समझ लेना। शुभ शाश्वत है। शुभ न हिंदू का, न मुसलमान का, न जैन का, न ईसाई का, शुभ तो परमात्मा से संबंधित होने का नाम है। शुभ सासारिक धारणा नहीं है, न सामाजिक धारणा है। शुभ तो अंतसछंद की प्रतीति है। शांडिल्य से पूछो, या अष्टावक्र से, या मुझ से, उत्तर यही होगा कि जिस बात से तुम्हारे भीतर के छंद में सहयोग मिले, वह शुभ। और जिस बात से तुम्हारे भीतर के छंद में बाधा पड़े, वह अशुभ।

जिससे तुम्हारा अंतस गीत बढ़े वह शुभ, जिससे तुम्हारा अंतस गीत छिन्नछिन्न हो, खंडित हो, वह अशुभ। जिससे तुम समाधि के करीब आओ, वह शुभ, और जिससे तुम समाधि से दूर जाओ, वह अशुभ। कसौटी भीतर है, कसौटी बाहर नहीं है।

 अथातो भक्ति जिज्ञासा

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts