श्वास का जो प्राथमिक स्रोत है, जापानी भाषा में उसके लिए एक शब्द है।
हमारी भाषा में कोई शब्द नहीं है। वह शब्द है उनका: तांदेन, दकमद। नाभि से
दो इंच नीचे, ठीक श्वास चलती हो तो नाभि से दो इंच नीचे, जिसे जापानी
तांदेन कहते हैं, उस बिंदु से श्वास का संबंध होता है। और जितना तनावग्रस्त
व्यक्ति होगा, तांदेन से श्वास का बिंदु उतना ही दूर हटता जाता है।
तो जितने ऊपर से आप श्वास लेते हैं, उतने ही तनाव से भरे होंगे। और जितने नीचे से श्वास लेते हैं, उतने ही विश्राम को उपलब्ध होंगे। और अगर तांदेन से श्वास चलती हो, तो आपके जीवन में तनाव बिलकुल नहीं होगा। बच्चे के जीवन में तनाव न होने का जो व्यवस्थागत कारण है, वह तांदेन से श्वास का चलना है। जब आप भी कभी विश्राम में होते हैं, तो अचानक खयाल करना, आपकी श्वास तांदेन से चलती होगी। और जब आप तनाव से भरे हों, बहुत मन उदास, चिंतित, परेशान हो, व्यथित हो, बेचैनी में हो, तब आप खयाल करना, तो श्वास बहुत ऊपर से आकर लौट जाएगी। यह श्वास का ऊपर से आकर लौट जाना इस बात का सूचक है कि आप अपनी मूल प्रकृति से बहुत दूर हो गए हैं।
लेकिन कुछ कारण हैं जिनकी वजह से हम लोगों को शिक्षा देते हैं कि पेट से श्वास मत लेना। एक तो एक पागलपन का खयाल सारी दुनिया में फैल गया है और वह यह है कि छाती फूली हुई होनी चाहिए, छाती बड़ी होनी चाहिए। तो छाती जितनी बड़ी करनी हो, उतनी श्वास छाती में भरनी चाहिए, नीचे नहीं; और छाती से ही वापस लौटा देनी चाहिए। तो छाती को बड़ा करने का पागलपन व्यक्ति के भीतर एक भयंकर उत्पात को निर्मित कर देता है।
अगर आपने कभी जापानी या चीनी फकीरों की तस्वीरें देखी हैं, या लाओत्से की तस्वीर अगर आपने कभी देखी है, तो आपको थोड़ी हैरानी होगी। चीन और जापान में तो बुद्ध की भी जो तस्वीरें और मूर्तियां बनाई हैं, वे भी देख कर हमें हैरानी होगी। क्योंकि हमने जो बुद्ध की मूर्तियां बनाई हैं, उनसे उनका मेल नहीं है। हमारी जो बुद्ध की मूर्तियां हैं, उनमें पेट बहुत छोटा है, पीठ से लगा हुआ है; और छाती बड़ी है। और जापान और चीन में बुद्ध की भी जो मूर्तियां हैं, उनमें पेट बड़ा है, ठीक बच्चे जैसा है। बच्चे की छाती तो विश्राम में होती है; पेट थोड़ा सा बड़ा होगा, क्योंकि श्वास पेट पर आएगी-जाएगी।
तो छाती को बड़ा करने का खयाल भीतर एक खतरनाक स्थिति को पैदा करता है। और वह खतरनाक स्थिति है: एंद्रिक और बौद्धिक…। तीन केंद्र ताओ मानता है: एक तांदेन–नाभि केंद्र, दूसरा हृदय केंद्र और तीसरा बुद्धि का मस्तिष्क केंद्र। नाभि केंद्र अस्तित्व का सबसे गहरा केंद्र है। फिर उसके बाद उससे कम गहरा केंद्र हृदय का है। और सबसे कम गहरा केंद्र बुद्धि का है।
ताओ उपनिषद्
ओशो
तो जितने ऊपर से आप श्वास लेते हैं, उतने ही तनाव से भरे होंगे। और जितने नीचे से श्वास लेते हैं, उतने ही विश्राम को उपलब्ध होंगे। और अगर तांदेन से श्वास चलती हो, तो आपके जीवन में तनाव बिलकुल नहीं होगा। बच्चे के जीवन में तनाव न होने का जो व्यवस्थागत कारण है, वह तांदेन से श्वास का चलना है। जब आप भी कभी विश्राम में होते हैं, तो अचानक खयाल करना, आपकी श्वास तांदेन से चलती होगी। और जब आप तनाव से भरे हों, बहुत मन उदास, चिंतित, परेशान हो, व्यथित हो, बेचैनी में हो, तब आप खयाल करना, तो श्वास बहुत ऊपर से आकर लौट जाएगी। यह श्वास का ऊपर से आकर लौट जाना इस बात का सूचक है कि आप अपनी मूल प्रकृति से बहुत दूर हो गए हैं।
लेकिन कुछ कारण हैं जिनकी वजह से हम लोगों को शिक्षा देते हैं कि पेट से श्वास मत लेना। एक तो एक पागलपन का खयाल सारी दुनिया में फैल गया है और वह यह है कि छाती फूली हुई होनी चाहिए, छाती बड़ी होनी चाहिए। तो छाती जितनी बड़ी करनी हो, उतनी श्वास छाती में भरनी चाहिए, नीचे नहीं; और छाती से ही वापस लौटा देनी चाहिए। तो छाती को बड़ा करने का पागलपन व्यक्ति के भीतर एक भयंकर उत्पात को निर्मित कर देता है।
अगर आपने कभी जापानी या चीनी फकीरों की तस्वीरें देखी हैं, या लाओत्से की तस्वीर अगर आपने कभी देखी है, तो आपको थोड़ी हैरानी होगी। चीन और जापान में तो बुद्ध की भी जो तस्वीरें और मूर्तियां बनाई हैं, वे भी देख कर हमें हैरानी होगी। क्योंकि हमने जो बुद्ध की मूर्तियां बनाई हैं, उनसे उनका मेल नहीं है। हमारी जो बुद्ध की मूर्तियां हैं, उनमें पेट बहुत छोटा है, पीठ से लगा हुआ है; और छाती बड़ी है। और जापान और चीन में बुद्ध की भी जो मूर्तियां हैं, उनमें पेट बड़ा है, ठीक बच्चे जैसा है। बच्चे की छाती तो विश्राम में होती है; पेट थोड़ा सा बड़ा होगा, क्योंकि श्वास पेट पर आएगी-जाएगी।
तो छाती को बड़ा करने का खयाल भीतर एक खतरनाक स्थिति को पैदा करता है। और वह खतरनाक स्थिति है: एंद्रिक और बौद्धिक…। तीन केंद्र ताओ मानता है: एक तांदेन–नाभि केंद्र, दूसरा हृदय केंद्र और तीसरा बुद्धि का मस्तिष्क केंद्र। नाभि केंद्र अस्तित्व का सबसे गहरा केंद्र है। फिर उसके बाद उससे कम गहरा केंद्र हृदय का है। और सबसे कम गहरा केंद्र बुद्धि का है।
ताओ उपनिषद्
ओशो
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