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Thursday, August 13, 2015

स्वपदम् शक्ति

   अपने में ठहर जाना महाशक्तिवान हो जाना है। महाशक्तिवान तो तुम हो; लेकिन तुम ऐसे हो जैसे किसी बाल्टी में हजार छेद हों और कोई कुएं से पानी भर रहा हो। पानी भरता हुआ दिखायी पड़ता है हर बार; क्योंकि जब तक बाल्टी पानी में डूबी रहती है बिलकुल भरी रहती है। जैसे ही बाल्टी पानी से ऊपर उठती है, तुम खींचना शुरू करते हो कि हजार मार्गों से पानी गिरना शुरू हो जाता है। जब तक बाल्टी ऊपर आती है, तब तक तो उसमें कुछ भी नहीं बचता।

हजार वासनाएं तुम्हारे हजार छेद है। उनसे तुम्हारी ऊर्जा खोती है। जब तक तुम सपना देखते हो, तब तक बाली भरी है; जब तक तुम कामना करते हो, तब तक बाल्टी भरी है। जैसे ही कामना को कृत्य में लाते हो; जैसे ही खींचना शुरू करते हो कुएं से बाल्टी को; जैसे ही सपने को सत्य बनाने की कोशिश करते हो, वैसे ही ऊर्जा खोनी शुरू हो जाती है। हाथ आते तक बाल्टी हाथ आ जाती है, हजार छेद हाथ में आ जाते है; पानी की एक बूंद नहीं आती, प्यास उतनी की उतनी रह जाती है। हर बार जब खींचते हो, बड़ा शोरगुल मचता है कुएं में और लगता है कि पानी चला आ रहा है, तूफान आ रहा है; हाथ कुछ भी नहीं आता। हर बार तुम खाली हाथ लौटते हो; लेकिन, वासना बड़ी अदभुत है।

एक मछलीमार को कोई राहगीर पूछता था कि कितनी मछलियां पकड़ी। सांझ होने के करीब थी, सुबह से बैठा था बंसी को डाले। यह राहगीर कई बार वहां से निकला और देख गया था। आखिर उससे न रहा गया। उसने पूछा, ‘कितनी पकडी है?’ उस मछलीमार ने कहा कि जिस एक को पकड़ने की अभी मैं कोशिश कर रहा हूं एक यह और अगर दो और, तो तीन होंगी। अभी पकडी एक भी नहीं है-जिसको पकड़ रहा हूं यह एक और दो और, तो तीन होंगी।

तुम हमेशा इस मछलीमार की हालत में हों,जिसको पकड़ रहे हो, यह एक और दो अभी सपने में है। और यह भी अभी सत्य नहीं हुई है। हिसाब तीन का है और तुम बड़े प्रसन्न हो रहे हो। जब भी बाल्टी हाथ में आती है, तुम पाते हो, फिर खाली आ गयी। और ध्यान रहे, जितनी बार तुम डालते हो कुएं में, छेद उतने बड़े होते जाते है। इसलिए बच्चे प्रसन्न मालूम होते है। बूढ़े बिलकुल उदास मालूम होते है; उनकी बाली छेद—ही—छेद हो गयी। कितनी बार डाल चुके कितनी बार निकाल चुके —सब छेद बड़े हो गये। लेकिन, फिर भी पुरानी आशा मरती नहीं—कभी तो भरी हुई आ जायेगी; क्योंकि भरी हुई दिखायी पड़ती है! फिर पानी गिरता हुआ भी दिखायी पड़ता है। शक्ति तो तुम्हारे पास है परमात्मा की; लेकिन मन तुम्हारे पास छेदवाली बाल्टी की तरह है।

‘स्वपदम्  शक्ति’ का अर्थ है कि अब तुम वासनाओं में न दौड़ोगे। एक वासना गिरी कि एक छेद बंद हुआ। वासनाएं गिर गयीं, सारे छेद खो गये। और तब तुम्हें किसी और कुएं में बाल्टी डालने की जरूरत नहीं, तुम खुद ही कुआं हो। बडी है ऊर्जा तुम्हारे पास! सिर्फ तुम्हारी व्यर्थ खोती शक्ति बच जाये तो तुम महाऊर्जा लेकर पैदा हुए हो। तुम्हें कुछ पाना नहीं है; जो भी पाने योग्य है, वह तुम्हारे पास है; सिर्फ उसे खोने से बचना है। परमात्मा को पाने का सवाल नहीं है, सिर्फ खोने से बचना है। वह तुम्हें मिला ही हुआ है। कैसे तुम खो देते हो, यही बड़ी से बड़ी रहस्य की घटना है जगत में।


ओशो 

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