Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Sunday, August 16, 2015

बिंबिसार - पुण्यश्रावक

सम्राट बिंबिसार ने एक बार महावीर से जाकर कहा था.’ मैं सत्य पाना चाहता हूं। मेरे पास जो कुछ है, वह मैं सब देने को राजी हूं पर मैं वह सत्य चाहता हूं जो कि मनुष्य को दुख से मुक्त कर देता है।’

महावीर ने देखा कि जगत को जीतने वाला सम्राट सत्य को भी उसी भांति जीतना चाहता है। सत्य को भी वह खरीदने के विचार में है। उसके अहंकार ने ही यह रूप भी धरा है। उन्होंने बिंबिसार से कहा. ‘सम्राट, अपने राज्य के पुण्यश्रावक से पहले एक सामायिक का, एक ध्यान का फल प्राप्त करो। उससे सत्य और मोक्ष प्राप्ति का तुम्हारा मार्ग प्रशस्त होगा।’

बिंबिसार पुण्यश्रावक के पास गए। उन्होंने कहा :’ श्रावक श्रेष्ठ, मैं याचना करने आया हूं। मूल्य जो मांगोगे, दूंगा।’

सम्राट की मांग सुन कर श्रावक ने कहा.’ महाराज, सामायिक तो समता का नाम है। रागद्वेष की विषमता को चित्त से दूर कर स्वयं में ठहरना ही सामायिक है। यह कोई किसी को कैसे दे सकता है? आप उसे खरीदना चाहते हैं, यह तो असंभव है। उसे तो आपको स्वयं ही पाना होगा। उसके अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है।’सत्य को खरीदा नहीं जा सकता है। न उसे दान में, भिक्षा में ही पाया जा सकता है और न उसे आक्रमण करके ही जीता जा सकता है।

उसे पाने का मार्ग आक्रमण नहीं है। आक्रमण अहंकार की वृत्ति है। और अहंकार जहां है, वहां सत्य नहीं है।
सत्य को पाने के लिए स्वयं को शून्य होना पड़ता है। शून्य के द्वार से उसका आगमन होता है, अहंकार के आक्रमण से नहीं, शून्य की ग्रहणशीलता से, सेसिटिविटी से वह आता है। सत्य पर आक्रमण नहीं करना है, उसके लिए स्वयं में द्वार, ओपनिंग देना है।

हुईनेंग ने कहा’ सत्य को पाने का मार्ग है, अनभ्यास के द्वारा अभ्यास, कल्टीवेशन बाई मीन्स ऑफ नॉनकल्टीवेशन। अभ्यास में भी आक्रमण न हो, इसलिए उसमें अनभ्यास की शर्त रखी है। वह किया नहीं अक्रिया है, अभ्यास नहीं अनभ्यास है, पाना नहीं खोना है। पर, यही उसे पाने का मार्ग भी है। मैं जितना अपने को रिक्त और खाली कर लेता हूं वह उतना ही मुझे उपलब्ध हो जाता है।
 
वर्षा में पानी कहां पहुंच जाता है! भरे हुए टीलों पर नहीं, खाली गडुाएं में उसका आगमन होता है। सत्य की प्रकृति भी वही है जो जल की है। यदि सत्य को चाहते हैं, तो अपने को बिलकुल खाली और शून्य कर लें। शून्य होते ही पूर्ण उसे भर देता है।

साधना पथ

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts