Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Tuesday, August 18, 2015

सूत्र कहता है, पूछो वायु से, पूछो पृथ्वी से, पूछो जल से इन तीनों ने बहुत से रहस्य छिपाए हुए हैं।

हिंदुओं ने अपने मंदिर नदियों के किनारे बनाए हैं, खास कारणों से। क्योंकि हिंदुओं के साधना- स्थल सभी नदियों के किनारे थे। वह भी खास कारणों से। हिंदुओं के सभी तीर्थ नदियों के किनारे हैं, वह भी खास कारणों से। हिंदू-साधना की जो गहनतम प्रक्रियाएं हैं, हिंदू ऋषि-महर्षियों ने जल में उनको संरक्षित किया है, इसलिए तीर्थ इतने मूल्यवान हैं।

लोग तो नासमझी की तरह यात्रा करते रहते हैं, गंगा की, जमुना की। चले जाते हैं तीर्थों में, संगम पर पहुंच जाते हैं, मेले जुटा लेते हैं। लेकिन उन्हें पता नहीं है कि जब प्राथमिक रूप से यह घटना शुरू हुई थी, तो इसके पीछे बड़े रहस्य थे। गंगा में हिंदुओं ने अपने जीवन-रहस्य के अनुभवों का सब कुछ हू’ छिपाया हुआ है। और जो व्यक्ति भी गंगा से पूछने में समर्थ हो सकता है, उसे उत्तर उपलब्ध हो जाएंगे।। तो गंगा के किनारे जा कर बैठ जाना, कोई परंपरागत बात ही नहीं है, गंगा के किनारे बैठना बड़ा अर्थपूर्ण है।

जैनों ने अपने सारे मंदिर और सारे तीर्थ पहाड़ों पर बनाए हुए हैं, जान कर। क्योंकि नदियों के किनारे हिंदुओं ने अपनी धारणाओं को काफी दूर तक प्रविष्ट किया था। और दोनों के मिश्रित होने की और दोनों के एकदूसरे में उलझ जाने की संभावना थी। तो जैनों ने अपने सारे तीर्थ पहाड़ों पर चुने हैं। और पर्वतों में उन्होंने अपनी धारणा को आविष्ट किया है।

एक छोटे से पहाड़ पर, पार्श्वनाथ हिल पर, जैनों के बाईस तीर्थंकरों ने देहत्याग की। चौबीस में से बाईस! आकस्मिक नहीं हो सकता। चौबीस तीर्थंकरों में से, हजारों साल की यात्रा में, बाईस तीर्थंकर एक ही पर्वत पर जा कर देह को त्याग करें! वे दो भी नहीं कर पाए तो कुछ आकस्मिक दुर्घटनाओं के कारण। अन्यथा योजना यही थी कि चौबीस के चौबीस तीर्थंकर एक ही पर्वत पर देह को त्याग करें। क्योंकि देह के त्याग के वक्त, तीर्थंकर से जो ज्योति उत्पन्न होती है, वह पत्थरों पर सदा के लिए अंकित हो जाती है। जो उस रहस्य को जानता है, वह पार्श्वनाथ हिल पर जा कर आज भी पहाड़ से पूछ सकता है, कि जब पार्श्वनाथ ने देह त्यागी, तो इस पर्वत पर क्या घटा, इस पर्वत ने क्या अनुभव किया?

प्रक्रियाओं में फर्क है। क्योंकि नदी में अगर अंकित करना हो तो और ढंग से अंकित करना होता है, क्योंकि नदी सतत प्रवाहशील है। अगर पर्वत पर कोई चीज अंकित करनी हो तो और ढंग से अंकित करनी होती है। पूरी प्रक्रिया, पूरा तंत्र अलग होता है, क्योंकि पर्वत स्थिर है।

सारे धर्मों ने सिर्फ शास्त्र ही नहीं रचे हैं, क्योंकि शास्त्र तो बहुत ही कागजी चीज है, उसका ज्यादा भरोसा नहीं, उससे भी गहरे उपाय उन्होंने खोजें हैं। जैसे इजिप्त में पिरामिड बनाए हैं, इजिप्त के धार्मिक लोगों ने। उन्होंने पिरामिड की रचना में सब कुछ छिपा दिया है। पिरामिड की बनावट में, पिरामिड के पत्थर पत्थर में, उसकी पूरी योजना में, सब छिपा दिया, जो उन्होंने जाना था। और जो पिरामिड को समझने वाले लोग हैं, अब कई तरह से खोज चलती है पिरामिडों की, वे चकित हैं कि कितना रहस्य! कहा जाता है कि इजिप्त ने जो भी जाना था, वह सब पिरामिड में डाल दिया है। लेकिन कुंजियां खो गई हैं। थोड़ा बहुत कुछ कुंजी पकड़ में आती है कहीं से, तो थोड़े बहुत रहस्य समझ में आते हैं। सारी दुनिया में किताब पर भरोसा पुराने धर्मों ने कभी नहीं किया। उन्होंने कुछ और उपाय किया। लेकिन पिरामिड भी आदमी की बनाई हुई चीज है, कितनी ही मजबूत हो, मिट सकती है। इसलिए भारत में हमने आदमी की बनाई हुई चीजों में छिपाने की कोशिश न करके प्रकृति के ही उपादानों में डाल देने की व्यवस्था की है।

‘पूछो पृथ्वी से, वायु से, जल से-उन रहस्यों को, जो वे तुम्हारे लिए छिपाए हुए हैं।’

एक विशेष ध्यान की अवस्था में, संपर्क स्थापित हो जाता है, उत्तर मिलने शुरू हो जाते हैं। लेकिन उसके पहले तुम्हारा हृदय इतना शांत हो जाना चाहिए कि तुम अपने उत्तर उसमें न डाल लो। नहीं तो सब विकृत हो जाएगा। तुम्हें इतना मौन हो जाना चाहिए कि तुम्हारी तरफ से जोड्ने का कोई उपाय न रहे। तो ही तुम्हें पता चलेगा कि क्या कहा जा रहा है। अन्यथा तुम अपना ही मिश्रित कर लोगे।

मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि आपने स्वप्न में हमसे ऐसा कहा! मैं उनसे कहता हूं कि तुम पहले चुप होना सीखो। नहीं तो स्वप्न भी तुम्हारा है और तुम्हारे स्वप्न में आया हुआ मैं भी तुम्हारा ही हूं, मैं नहीं हूं। स्वप्न भी तुम्हीं निर्मित कर रहे हो, मुझे भी तुम्हीं निर्मित कर रहे हो, और मुझसे जो वाणी तुम बुलवा रहे हो, वह भी तुम्हारी ही है। लेकिन तुम होशियार हो, क्योंकि तुम अपने पर तो भरोसा नहीं कर सकोगे, इसलिए तुम मुझसे बुलवा रहे हो। और तुम जो चाहते हो वही बुलवा रहे हो।

आदमी को स्वयं के साथ छल करने की इतनी संभावना है कि जिसका कोई हिसाब नहीं, अंत नहीं। मेरे पास ही आ कर लोग मुझसे कहते हैं कि आपने ही आदेश दिया था, इसलिए हमने ऐसा किया! कब तुमने मुझसे आदेश लिया था? कहते हैं, स्वप्न में आपने कह दिया था! और किया उन्होंने वही, जो वे करना चाहते थे! और कई दफे तो मैं इतना चकित हो जाता हूं कि मैं सामने ही उनको आदेश दे रहा हूं कि ऐसा मत करना, वे उसको सुन ही नहीं रहे हैं! वे कह रहे हैं कि आपने आदेश दिया था स्वप्न में, उसको हमने किया! और मैं सीधा आदेश दे रहा हूं वह उसको सुन ही नहीं रहे हैं, करने की तो बात ही अलग है! इसको कहता हूं मैं छल। पर इसका उन्हें पता भी नहीं कि वे क्या कर रहे हैं! मैं उनसे कह रहा हूं प्रकट में कि ऐसा करो, उसको वे सिर हिला रहे हैं कि यह हमसे न होगा! लेकिन स्वप्न में मैंने कहा था, उसको मान कर उन्होंने किया! निश्चित ही, जो वे करना चाहते हैं, वही कर रहे हैं।

जब तक तुम्हारा मन पूरी तरह शांत न हो गया हो, तब तक तुम वही सुनोगे, जो तुम सुनना चाहते हो। तब तक तुम वही करोगे, जो तुम करना चाहते हो। तब तक इस जगत के रहस्य तुम्हारे सामने न खुल सकेंगे। क्योंकि तुम अपनी ही भावनाओं, अपनी ही वासनाओं, अपनी ही कामनाओं से इस बुरी तरह भरे हो कि जगत कुछ प्रकट भी करना चाहे, तो प्रकट कर नहीं सकता है। लेकिन अगर ध्यान तुम्हारा सधता जाए और ऐसी घड़ी आ जाए, जब तुम अनुभव कर सको कि अब कोई भी विचार नहीं है, तो थोड़ा प्रयोग करना।

थोड़ा प्रयोग करना। ऐसे ध्यान की अवस्था में किसी वृक्ष के नीचे कुछ दिन प्रयोग करना। किसी भी वृक्ष के नीचे प्रयोग हो सकता है। लेकिन अगर कोई विशेष वृक्ष हो तो परिणाम बहुत शीघ्र और साफ होंगे। जैसे बुद्ध गया का बोधिवृक्ष है। अगर उसके नीचे बैठ कर तुम सात दिन ध्यान करते रहो। और तुम्हारा ध्यान जम गया हो, ठीक आ गया हो, तो फिर तुम वहां चले जाओ और सात रात बैठे रहो वृक्ष के नीचे, ध्यान करते हुए। और जब तुम्हें लगे कि तुम बिलकुल शून्य हो गए हो, तब तुम वृक्ष को सिर्फ इतना कह दो, कि तुझे कुछ मेरे लिए कहना हो तो कह दे। और तब तुम मौन बैठ कर प्रतीक्षा करते रहो। तुम हैरान हो जाओगे कि वृक्ष तुमसे कुछ कहेगा। और कुछ ऐसा कहेगा जो तुम्हारे पूरे जीवन को रूपांतरित कर दे।

वृक्ष कुछ संजोए हुए है, कुछ संगृहीत किए हुए है, और केवल उन्हीं के लिए संजोए हुए है, जो पूछने की सामर्थ्य रखते हैं। वे पूछेंगे तो उनको उत्तर मिल जाएगा। लेकिन उतनी दूर जाने की भी कोई जरूरत नहीं है। यह आकाश सारे बुद्धों को अपने में समाए हुए है। इस पृथ्वी पर सारे महावीर और सारे जीसस और सारे कृष्ण चले और उठे हैं। इस पृथ्वी से ही पूछ सकते हो।

पूरी तरह ध्यान की अवस्था में पृथ्वी पर नग्न लेट जाओ, जैसे कोई छोटा बच्चा मां की छाती पर लेटा हो। और ऐसा ही खयाल कर लो कि यह पूरी पृथ्वी तुम्हारी मां है, तुम उसके स्तन अपने हाथ में लिए हुए उसकी छाती पर लेटे हुए हो। बिलकुल शांत और शून्य हो जाओ। और जब तुम्हें लगे कि अब तुम्हारे शरीर की मिट्टी में और उसकी मिट्टी में कोई फर्क न रहा, दोनों एक हो गई हैं, और तुम्हारे भीतर शून्य विराजमान हो गया है, तब तुम पूछ लो। यह पृथ्वी अगर तुम्हारे लिए कोई संदेश रखे है, तो तुम्हें उपलब्ध हो जाएगा। और तुम पाओगे कि ऐसा बलशाली संदेश तुमने कभी कहीं से नहीं पाया। उसके पाने के बाद तुम वही न रह जाओगे, जो तुम थे। और तब इस प्रक्रिया में गहरा उतरा जा सकता है। और इस तरह से बहुत सी चीजें उपलब्ध की जा सकती है; जो वैसे खो गई है।

साधनसूत्र

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts