Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Thursday, August 20, 2015

दान का अर्थ हैः देने का भाव।


फिर देने की बात तो अपने आप उसमें से निकल आती है, पर देने का भाव मूल में है। और ध्यान रहे, देना उतना जरूरी नहीं, जितना देने का भाव जरूरी है। फिर देना तो उसके पीछे चला आता है। और कई बार हम दे भी देते हैं, लेकिन देने का भाव बिलकुल नहीं होता है। और तब दान झूठा होता है। हम देते हैं, लेकिन हम देते ही तभी हैं, जब हम कुछ देने के पीछे चाहते हैं। उसमें भी सौदा होता है। एक आदमी कुछ दान कर देता है, तो सोचता है कि धर्म या पुण्य होगा; तो सोचता है कि स्वर्ग मिलेगा, तो सोचता है कि परमात्मा इसके प्रत्युत्तर में कुछ देगा। लेने पर ही उसकी नजर है। देना अगर है भी तो सौदा है। तो फिर दान नहीं रहा।


दान का अर्थ हैः देने में आनंद।


देना ही आनंद है, उसके पास लेने का कोई भाव नहीं है। ऐसा नहीं कि नहीं मिलेगा, बहुत मिलेगा। सच तो यह है कि देने के भाव से ही जो देगा, बिना सौदा से देगा, उसे अनंत गुना मिलेगा। लेकिन यह अनंत गुना मिलना लय नहीं होना चाहिए। यह दृष्टि नहीं होनी चाहिए, यह हमारी वासना नहीं होनी चाहिए। यह सहज परिणाम है, जो घटित होता है।


सूरज निकलता है, फूल खिल जाते हैं। सूरज कोई फूलों को खिलाने के लिए नहीं निकलता है। और फूलों को खिलाने के लिए किसी दिन निकले, तो बहुत संदेह है कि फूल खिलें। और सूरज अगर एक-एक फूल को पकड़ कर खिलाने की कोशिश करे, तो बहुत मुश्किल में पड़ जाए, सांझ होते-होते सदा के लिए थक जाए। फूल खिलते हैं, ये सूरज के निकलने में ही खिल जाते हैं। दान में ही मिल जाता है सब कुछ। जो दिया है वह ना-कुछ है; जो मिलता है, वह बहुत है। लेकिन मिलने की धारणा अगर मन में हो, तो दान नहीं हो पाता। देना हो शुद्ध। और देना कब होता है शुद्ध? जब हमें देने में ही आनंद मिलता है।


दान का अर्थ हैः उदारता और प्रेम-देने का भाव।

समाधी के सप्तद्वार


ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts