सूत्र:
7—समग्र जीवन का सम्मान करो, जो तुम्हें चारों और से घेरे हुए है।अपने आसपास के निरंतर बदलने वाले
और चलायमान जीवन पर ध्यान दो,
क्योंकि वह मानवों के ह्रदय का ही बना है।
और ज्यों–ज्यों तुम उसकी बनावट और उसकी आशय समझोगे,
त्यों—त्यों क्रमश: तुम जीवन का विशालतर शब्द भी
पढ़ और समझ सकोगे।
8—समझ पूर्वक मानव ह्रदय में झांकना सीखों।
मनुष्य के ह्रदयों का अध्ययन करो,
ताकि तुम जान सको कि वह जगत कैसा है,
जिसमें तुम रहते हो, और
जिसके तुम एक अंश बन जाना चाहते हो।
बुद्धि निष्पक्ष होती है,
न कोई तुम्हारा शत्रु है और न कोई मित्र।
सभी समान रूप से तुम्हारे शिक्षक है।
तुम्हारा शत्रु एक रहस्य बन जाता है।
जिसे तुम्हें हल करना है,
चाहे इस हल करने में युगों का समय लग जाए,
क्योंकि मानव को समझना तो है ही।
तुम्हारा मित्र तुम्हारा ही एक अंग बन जाता है,
तुम्हारा ही एक विस्तृत रूप हो जाता है,
जिसे समझना कठिन होता है।
साधनासूत्र
ओशो
No comments:
Post a Comment