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Thursday, August 20, 2015

‘’जब नींद अभी नहीं आयी हो और बाह्य जागरण विदा हो गया हो, उस मध्‍य बिंदू पर बोधपूर्ण रहने से आत्‍मा प्रकाशित होती है।‘’ - शिव

तुम्‍हारी चेतना में कई मोड़ आते है, मोड़ के बिंदु आते है। इन बिंदुओं पर तुम अन्‍य समयों की तुलना में अपने केंद्र के ज्‍यादा करीब होते हो। तुम कार चलाते समय गियर बदलते हो और गियर बदलते हुए तुम न्‍यूट्रल से गुजरते हो। यह न्‍यूट्रल गियर निकटतम है।

 सुबह जब नींद विदा हो रही होती है और तुम जागने लगते हो। लेकिन अभी जागे नहीं हो, ठीक उस मध्‍य बिंदु पर तुम न्‍यूट्रल गियर में होते हो। यह एक बिंदु है जहां तुम न सोए हो और न जागे हो, ठीक मध्‍य में हो; तब तुम न्‍यूट्रल गियर में हो। नींद से जागरण में आते समय तुम्‍हारी चेतना की पूरी व्‍यवस्‍था बदल जाती है। वह एक व्‍यवस्‍था से दूसरी व्‍यवस्‍था में छलांग लेती है। और इन दोनों के बीच में कोई व्‍यवस्‍था नहीं होती, एक अंतराल होता है। इस अंतराल में तुम्‍हें अपनी आत्‍मा की एक झलक मिल सकती है।

वही बात फिर रात में घटित होती है जब तुम अपनी जाग्रत व्‍यवस्‍था से नींद की व्‍यवस्‍था में, चेतन से अचेतन में छलांग लेते हो। तब फिर एक क्षण के लिए कोई व्‍यवस्‍था नहीं होती है। तुम पर किसी व्‍यवस्‍था की पकड़ नहीं होती है। क्‍योंकि तब तुम एक से दूसरी व्‍यवस्‍था में छलांग लेते हो। इन दोनों के मध्‍य में अगर तुम सजग रह सकें, बोधपूर्ण रह सके, इन दोनों के मध्‍य में अगर तुम अपना स्‍मरण रख सके, तो तुम्‍हें अपने सच्‍चे स्‍वरूप की झलक मिल जाएगी।

 तो इसके लिए क्‍या करें? नींद में उतरने के पहले विश्राम पूर्ण होओ और आंखे बंद कर लो। कमरे में अँधेरा कर लो। आंखे बंद कर लो। और बस प्रतीक्षा करो। नींद आ रही है। बस प्रतीक्ष करो। कुछ मत करो, बस प्रतीक्षा करो। तुम्‍हारा शरीर शिथिल हो रहा है। तुम्‍हारा शरीर भारी हो रहा है। बस शिथिलता को, भारीपन को महसूस करो। नींद की अपनी ही व्‍यवस्‍था है, वह काम करने लगती है। तुम्‍हारी जाग्रत चेतना विलीन हो रही है। इसे स्‍मरण रखो, क्‍योंकि वह क्षण बहुत सूक्ष्‍म है। वह क्षण परमाणु सा छोटा होता है। इस चूक गये तो चूक गये। वह कोई बड़ा अंतराल नहीं है। बहुत छोटा है। यह क्षण भर का अंतराल है, जिसमें तुम जागरण से नींद में प्रवेश कर जाते हो। तो बस पूरी सजगता से प्रतीक्षा करो। प्रतीक्षा किए जाओ।

इसमे थोड़ा समय लगेगा। कम से कम तीन महीने लगते है। तब एक दिन तुम्‍हें उस क्षण की झलक मिलेगी। जो ठीक बीच में है। तो जल्‍दी मत करो। यह अभी ही नहीं होगा, यह आज रात ही नहीं होगा। लेकिन तुम्‍हें शुरू करना है और महीनों प्रतीक्षा करनी है। साधारण: तीन महीने में किसी दिन यह घटित होगा। यह रोज ही घटित हो रहा है। लेकिन तुम्‍हारी सजगता और अंतराल का मिलन आयोजित नहीं किसा जा सकता। वह घटित हो ही रहा है। तुम प्रतीक्षा किए जाओ और किसी दिन वह घटित होगा। किसी दिन तुम्‍हें अचानक यह बोध होगा कि मैं न जागा हूं और न सोया हूं।

यह एक बहुत विचित्र अनुभव है, तुम उससे भयभीत भी हो सकते हो। अब तक तुमने दो ही अवस्‍थाएं जानी है। तुम्‍हें जागने का पता है, तुम्‍हें अपनी नींद का पता है। लेकिन तुम्हें यह नी पता है कि तुम्‍हारे भीतर एक तीसरा बिंदू भी है। जब तुम न जागे हो और सोये हो। इस बिंदू के प्रथम दर्शन पर तुम भयभीत भी हो सकते हो। आंतरिक भी हो सकते हो। भयभीत मत होओ। आतंरिक मत होओ। जो भी चीज इतनी नयी होगी। अनजानी होगी। वह जरूर भयभीत करेगी। क्‍योंकि यह क्षण जब तुम्‍हें इसका बार-बार अनुभव होगा। तुम्‍हें एक और एहसास देगा कि तुम न जीवित हो और नक मृत, कि तुम न यह हो और न वह। यह अतल खाई जैसा है।

 नींद और जागरण की व्‍यवस्‍थाएं दो पहाड़ियों की भांति है, तुम एक से दूसरे पर छलांग लगाते हो। लेकिन यदि तुम उसके मध्‍य में ठहर जाओ तो तुम अतल खाई में गिर जाओगे। और इस खाई का कहीं अंत नहीं है। तुम गिरते जाओगे। गिरते ही जाओगे।

विज्ञान भैरव तंत्र

ओशो

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