Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Tuesday, August 18, 2015

समर्पण २

मिलरेपा के संबंध में कथा है कि वह एक गुरु के पास गया और उसके प्रति समर्पित हो गया। मिलरेपा बहुत निष्ठावान, बहुत श्रद्धापूर्ण व्यक्ति था। जब गुरु ने कहा कि तुम्हें समर्पण करना होगा तो ही मैं तुम्हारी मदद करूंगा, तो मिलरेपा ने हा कर दी। अनेक लोगों को मिलरेपा से ईर्ष्या होने लगी, क्योंकि मिलरेपा बिलकुल भिन्न ढंग का व्यक्ति था। उसमें कोई चुंबकीय शक्ति थी। गुरु के पुराने शिष्य डरने लगे कि कहीं यह आदमी टिक गया तो यह प्रधान शिष्य हो जाएगा, अगला गुरु हो जाएगा। तो उन्होंने गुरु से कहा कि यह आदमी झूठा मालूम पड़ता है, इसकी परीक्षा होनी चाहिए कि क्या इसका समर्पण सच्चा है। गुरु ने पूछा कि किस ढंग की परीक्षा ली जाए? तो उन्होंने कहा कि इसे इस पहाड़ी से नीचे कूद जाने को कहा जाए—वे सब एक पहाड़ी पर बैठे थे।
तो गुरु ने मिलरेपा से कहा कि अगर तुम्हारा समर्पण सच्चा है तो इस पहाडी से नीचे कूद जाओ। मिलरेपा ही कहने के लिए भी नहीं रुका और पहाड़ी से नीचे कूद गया। शिष्यों ने सोचा कि वह मर गया। यह देखने के लिए वे पहाड़ी से नीचे उतरे, उन्हें घाटी में पहुंचने में घंटों लग गए। मिलरेपा वहां एक वृक्ष के नीचे बैठा ध्यान कर रहा था और वह बहुत प्रसन्न था सदा की तरह प्रसन्न।

शिष्यों ने फिर इकट्ठे होकर इस बात पर विचार किया। उन्होंने सोचा कि यह एक संयोग हो सकता है। गुरु भी चकित हुआ। उसने मिलरेपा से एकांत में पूछा कि तुमने यह कैसे किया? यह चमत्कार कैसे घटित हुआ? मिलरेपा ने कहा कि मैंने जब समर्पण कर दिया तो मेरे कुछ करने की बात कहां उठती है! आपने ही कुछ किया होगा। गुरु तो भलीभांति जानता था कि उसने कुछ नहीं किया है। उसने फिर परीक्षा लेने की सोची।

सामने एक मकान जल रहा था। गुरु ने मिलरेपा से कहा कि उस जलते हुए मकान में जाओ, वहां अंदर बैठो और वहां तब तक बैठे रहो जब तक मकान जलकर राख न हो जाए। मिलरेपा चला गया और वहां घंटों बैठा रहा। मकान जलकर राख हो गया। जब सब लोग उसे ढूंढने गए तो वह राख में दबा पड़ा मिला, लेकिन वह जीवित और आनंदित था-सदा की तरह आनंदित। मिलरेपा ने अपने गुरु के पैर छुए और कहा कि आप चमत्कार कर रहे हैं।

गुरु ने इस बार कहा कि अब इसे संयोग मानना कठिन है। लेकिन शिष्यों ने इसे भी संयोग बताया और कहा कि एक और परीक्षा ली जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि कम से कम तीन परीक्षाएं जरूरी हैं।
वे सब एक गांव से गुजर रहे थे जहां एक नदी पार करनी थी। गुरु ने मिलरेपा से कहा कि नाव नहीं है और न माझी ही है, मालूम होता है कि दोनों दूसरे किनारे पर ही हैं। तुम पानी पर चलकर उस पार जाओ और माझी को बुला लाओ।

मिलरेपा चला गया। वह पानी पर चलकर दूसरे किनारे पहुंच गया और नाव को इस पार ले आया। अब तो गुरु को भी पक्का गया कि यह चमत्कार है। उसने मिलरेपा से पूछा कि तुमने यह कैसे किया? मिलरेपा ने कहा कि मैं बस आपका नाम लेकर चला जाता हूं। गुरुदेव, आपका नाम लेने भर से काम हो जाता है।

गुरु ने सोचा कि जब मेरे नाम से हो जाता है तो मैं ही क्यों न प्रयोग करूं! और उसने पानी पर चलने की कोशिश की, लेकिन वह नदी में डूब गया। और तब से फिर किसी ने उस गुरु के संबंध में कुछ नहीं सुना।

यह कैसे हुआ? समर्पण असली चीज है, गुरु या वह व्यक्ति नहीं जिसके प्रति समर्पण किया जाता है। कोई मूर्ति, कोई मंदिर, वृक्ष, पत्थर, कुछ भी काम दे देगा। अगर तुम समर्पण करते हो तो तुम अस्तित्व के प्रति खुले हो जाते हो, तब समस्त अस्तित्व तुम्हें अपनी बाहों में ले लेता है। हो सकता है कि यह कथा कथा ही हो, लेकिन इसका अर्थ यह है कि जब तुम समर्पण करते हो तो सारा अस्तित्व तुम्हारे साथ हो जाता है। तब आग, पर्वत, नदी, घाटी, सब तुम्हारे साथ हैं, कोई भी तुम्हारे विरोध में नहीं है। क्योंकि जब तुम ही किसी के विरुद्ध नहीं रहे तो सारी शत्रुता समाप्त हो जाती है।

अगर तुम पहाड़ से गिरते हो और तुम्हारी हड्डियां टूट जाती हैं तो वे तुम्हारे अहंकार की हड्डियां हैं जो टूटती हैं। तुम प्रतिरोध कर रहे थे, तुमने घाटी को तुम्हारी सहायता करने का मौका नहीं दिया। तुम स्वयं अपनी सहायता करने में लगे थे, तुम अपने को अस्तित्व से ज्यादा बुद्धिमान समझते थे।

समर्पण का अर्थ है कि तुम्हें यह समझ आ गई कि मैं जो भी करूंगा वह मूढ़तापूर्ण होगा। और तुमने जन्मों-जन्मों ये मूढ़ताएं की हैं। अब इसे अस्तित्व पर छोड़ दो। तुमसे कुछ होने वाला नहीं है। तुम्हें यह समझना होगा कि मैं असहाय हूं। यह असहाय होने की प्रतीति ही समर्पण  करने में सहयोगी होती है।

तंत्र सूत्र

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts