सूत्र:
1 भावी जीवनसंग्राम में साक्षीभाव रखो।और यद्यपि तुम युद्ध करोगे, पर तुम योद्धा मत बनना।
वह तुम्हीं हो, फिर भी तुम सीमित हो और भूल कर सकते हो।
वह शाश्वत और निसंशय है।
वह शाश्वत सत्य है।
जब वह एक बार तुममें प्रविष्ट हो चुका और तुम्हारा योद्धा बन गया,
तो फिर वह तुम्हें कभी सर्वथा न त्याग देगा
और महाशांति के दिन वह तुमसे एकात्म हो जाएगा।
- सैनिक को खोजो और उसे भीतर युद्ध करने दो।
नहीं तो लड़ाई के आवेश और उतावलेपन में
तुम उसके पास से निकल जाओेगे।
और वह तुमको तब तक न पहचानेगा,
जब तक तुम स्वयं उसे न जान लो।
यदि उसके ध्यान से सुनने वाले कानों तक तुम्हारी पुकार पहुंचेगी।
तो वह तुम्हारे भीतर से लड़ेगा और तुम्हारे भीतर के नीरस शून्य को भर देगा।
- युद्ध के लिए उसका आदेश प्राप्त करो और उसका पालन करो।
सेनापति मानकर उसकी आज्ञाओं का पालन करो,
वरन इस प्रकार करो मानो कि वि तुम्हारा ही स्वरूप है
और उसके शब्दों में मानो तुम्हारी ही गुप्त इच्छाएं मुखरित हो रही है।
क्योंकि वह स्वयं तुम्हीं हो,
परंतु वह तुमसे असीम रूप से अधिक ज्ञानी और शक्तिशाली है।
साधनासूत्र
ओशो
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