ऐसा एक बार हुआ कि मुल्ला नसरुद्दीन गया किसी शहर में अपने घोड़े और
बग्घी को साथ लेकर। वह एक ग्रीष्म-दिवस था और मुल्ला पसीने से तर था।
अकस्मात सड़क पर घोड़ा रुक गया, पीछे मुल्ला को देखा और बोला, ‘अरे राम-राम,
बहुत गर्मी है।’ मुल्ला इस पर विश्वास नहीं कर सका। उसने सोचा कि वह पागल
हो गया है इस गर्मी के कारण, क्योंकि घोड़ा कैसे कुछ कह सकता है? घोडा कैसे
बोल सकता है?
उसने चारों ओर देखा यह जानने को कि किसी और ने सुना था क्या? लेकिन कोई न था वहां सिवाय उसके कुत्ते के जो बग्घी में बैठा हुआ था। किसी को न पाकर, बस सिर्फ इस बात से छुटकारा पाने को, वह कुत्ते से बोला, ‘क्या तुमने सुना जो वह बोला?’ कुत्ता कहने लगा, ‘ ओह, वह तो आम आदमी की भांति ही है-हमेशा बातें करते रहता है मौसम की और करता कुछ नहीं।’
यह है निर्जीव व्यक्ति-बात कर रहा है हमेशा ईश्वर की और कर कुछ नहीं रहा। वह सदा बात करता है महान विषयों की। और यह बातचीत होती है जख्म को छुपाने भर के लिए ही। वह बात करता है जिससे कि वह भूल सके यह बात कि इस बारे में वह कुछ नहीं कर रहा है। बातों की धुंध में से वह पलायन कर जाता है। फिर-फिर उसके बारे में बात करते हुए, वह सोचता है कि वह कुछ कर रहा है। लेकिन बातचीत कोई कार्य नहीं है। तुम किये चले जा सकते हो मौसम की बातें। तुम ईश्वर के बारे में बातें किये जा सकते हो। लेकिन यदि तुम कुछ करते नहीं, तो तुम मात्र अपनी ऊर्जा व्यर्थ गंवा रहे हो।
इस प्रकार का व्यक्ति धर्मगुरु बन सकता है, पादरी-पुरोहित, पंडित बन सकता है। वे मंद ऊर्जा के व्यक्ति हैं। और वे बहुत निपुण बन सकते हैं बातों में-इतने निपुण कि वे धोखा दे सकते हैं, क्योंकि वे हमेशा सुंदर और महान चीजों के विषय में बोलते हैं। दूसरे उन्हें सुनते हैं और धोखे में आते हैं। उदाहरण के लिए दार्शनिक है-ये तमाम लोग हैं निर्जीव, शिथिल। पतंजलि कोई दार्शनिक नहीं हैं। वे स्वयं एक विज्ञानिक हैं, और वे चाहते हैं दूसरे भी वैज्ञानिक हो जायें। ज्यादा प्रयास की आवश्यकता है।
ओम् के जप द्वारा और उस पर ध्यान करने द्वारा, तुम्हारा निम्न ऊर्जा तल उच्च हो जायेगा। कैसे घटता है ऐसा? क्यों तुम सदा मंद ऊर्जा-तल पर होते हो, हमेशा निढाल अनुभव करते हो, थके हुए होते हो? सुबह को भी जब तुम उठते हो, तुम थके होते हो। क्या हो रहा होता है तुम्हें? कहीं शरीर में सुराख बना है; तुम ऊर्जा टपकाते रहते हो। तुम्हें होश नहीं, पर तुम हो सुराखोंवाली बाल्टी की भांति। रोज-रोज तुम बाल्टी भरते, तो भी वह खाली ही रहती, खाली ही होती जाती है। यह टपकाव, यह रिसाव बंद करना ही पड़ता है।
ऊर्जा शरीर से कैसे बाहर रिसती है, ये गहरी समस्याएं हैं जीव-ऊर्जा शास्त्रियों के लिए। ऊर्जा हमेशा रिसती है हाथों की उंगलियों से और पैरों से, और आंखों से। ऊर्जा सिर से बाहर नहीं निकल सकती है। यह तो वर्तुलाकार होता है। कोई चीज जो गोलाकार, वर्तुलाकार है, शरीर की ऊर्जा को सुरक्षित रखने में मदद देती है। इसीलिए योग की ये मुद्राएं तथा आसन, सिद्धासन, पद्यासन-ये सब शरीर को एक वर्तुल बना देते हैं।
वह व्यक्ति जो सिद्धासन में बैठा होता है, अपने दोनों हाथ इकट्ठे जोड़ कर रखता है क्योंकि देह-ऊर्जा उंगलियों से बाहर निकलती है। यदि दोनों हाथ एक-दूसरे के ऊपर साथ-साथ रखे जायें, तो ऊर्जा एक हाथ से दूसरे हाथ तक घूमती है। यह एक वर्तुल बन जाती है। पैर की टांगें भी एक-दूसरे पर रखी जाती हैं जिससे कि ऊर्जा तुम्हारे अपने शरीर में बहती रहती है और रिसती नहीं है।
आंखें बंद रहती हैं क्योंकि आंखें बाहर छोड़ती हैं तुम्हारी प्राण-ऊर्जा के लगभग अस्सी प्रतिशत को। इसीलिए यदि तुम लगातार यात्रा कर रहे होते हो और तुम कार या रेलगाडी से बाहर देखते रहते हो, तो तुम बहुत थका हुआ अनुभव करोगे। यदि तुम आंखें बंद रख यात्रा करते हो, तो तुम ज्यादा थकान अनुभव नहीं करोगे। और तुम अनावश्यक चीजों की ओर देखते जाते हो, दीवारों के विज्ञापनों तक को पढ़ते हो! तुम अपनी आंखें बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हो, और जब आंखें थकान से भरी होती हैं तो सारा शरीर शका हुआ होता है। आंखें यह संकेत दे देती हैं कि अब यह बहुत हुआ।
जितना ज्यादा से ज्यादा संभव हो, योगी आंखें बंद किये रखने की कोशिश करता है। साथ ही हाथों और टांगो को परस्पर मिलाये रहता है, ताकि इन हिस्सों से ऊर्जा इकट्ठी पहुंचे। वह रीढ़ की हड्डी सीधे किये बैठा रहता है। यदि रीढ़ सीधी होती है और तुम बैठे हुए हो, तो तुम ज्यादा ऊर्जा बनाये रखोगे किसी अन्य तरीके की अपेक्षा। क्योंकि जब रीढ़ सीधी बनी रहती है, तो पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण तुममें से बहुत ऊर्जा नहीं ले सकता। गुरुत्वाकर्षण रीढ़ के आधार पर केवल एक स्थल का स्पर्श करता है। जब तुम झुकी हुई मुद्रा में बैठे हुए होते हो, अधलेटे झुके हुए, तो तुम सोचते हो, तुम आराम कर रहे हो। लेकिन पतंजलि कहते हैं, तुम ऊर्जा बाहर निकाल रहे हो, क्योंकि तुम्हारे शरीर का ज्यादा भाग तो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में होता है।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
उसने चारों ओर देखा यह जानने को कि किसी और ने सुना था क्या? लेकिन कोई न था वहां सिवाय उसके कुत्ते के जो बग्घी में बैठा हुआ था। किसी को न पाकर, बस सिर्फ इस बात से छुटकारा पाने को, वह कुत्ते से बोला, ‘क्या तुमने सुना जो वह बोला?’ कुत्ता कहने लगा, ‘ ओह, वह तो आम आदमी की भांति ही है-हमेशा बातें करते रहता है मौसम की और करता कुछ नहीं।’
यह है निर्जीव व्यक्ति-बात कर रहा है हमेशा ईश्वर की और कर कुछ नहीं रहा। वह सदा बात करता है महान विषयों की। और यह बातचीत होती है जख्म को छुपाने भर के लिए ही। वह बात करता है जिससे कि वह भूल सके यह बात कि इस बारे में वह कुछ नहीं कर रहा है। बातों की धुंध में से वह पलायन कर जाता है। फिर-फिर उसके बारे में बात करते हुए, वह सोचता है कि वह कुछ कर रहा है। लेकिन बातचीत कोई कार्य नहीं है। तुम किये चले जा सकते हो मौसम की बातें। तुम ईश्वर के बारे में बातें किये जा सकते हो। लेकिन यदि तुम कुछ करते नहीं, तो तुम मात्र अपनी ऊर्जा व्यर्थ गंवा रहे हो।
इस प्रकार का व्यक्ति धर्मगुरु बन सकता है, पादरी-पुरोहित, पंडित बन सकता है। वे मंद ऊर्जा के व्यक्ति हैं। और वे बहुत निपुण बन सकते हैं बातों में-इतने निपुण कि वे धोखा दे सकते हैं, क्योंकि वे हमेशा सुंदर और महान चीजों के विषय में बोलते हैं। दूसरे उन्हें सुनते हैं और धोखे में आते हैं। उदाहरण के लिए दार्शनिक है-ये तमाम लोग हैं निर्जीव, शिथिल। पतंजलि कोई दार्शनिक नहीं हैं। वे स्वयं एक विज्ञानिक हैं, और वे चाहते हैं दूसरे भी वैज्ञानिक हो जायें। ज्यादा प्रयास की आवश्यकता है।
ओम् के जप द्वारा और उस पर ध्यान करने द्वारा, तुम्हारा निम्न ऊर्जा तल उच्च हो जायेगा। कैसे घटता है ऐसा? क्यों तुम सदा मंद ऊर्जा-तल पर होते हो, हमेशा निढाल अनुभव करते हो, थके हुए होते हो? सुबह को भी जब तुम उठते हो, तुम थके होते हो। क्या हो रहा होता है तुम्हें? कहीं शरीर में सुराख बना है; तुम ऊर्जा टपकाते रहते हो। तुम्हें होश नहीं, पर तुम हो सुराखोंवाली बाल्टी की भांति। रोज-रोज तुम बाल्टी भरते, तो भी वह खाली ही रहती, खाली ही होती जाती है। यह टपकाव, यह रिसाव बंद करना ही पड़ता है।
ऊर्जा शरीर से कैसे बाहर रिसती है, ये गहरी समस्याएं हैं जीव-ऊर्जा शास्त्रियों के लिए। ऊर्जा हमेशा रिसती है हाथों की उंगलियों से और पैरों से, और आंखों से। ऊर्जा सिर से बाहर नहीं निकल सकती है। यह तो वर्तुलाकार होता है। कोई चीज जो गोलाकार, वर्तुलाकार है, शरीर की ऊर्जा को सुरक्षित रखने में मदद देती है। इसीलिए योग की ये मुद्राएं तथा आसन, सिद्धासन, पद्यासन-ये सब शरीर को एक वर्तुल बना देते हैं।
वह व्यक्ति जो सिद्धासन में बैठा होता है, अपने दोनों हाथ इकट्ठे जोड़ कर रखता है क्योंकि देह-ऊर्जा उंगलियों से बाहर निकलती है। यदि दोनों हाथ एक-दूसरे के ऊपर साथ-साथ रखे जायें, तो ऊर्जा एक हाथ से दूसरे हाथ तक घूमती है। यह एक वर्तुल बन जाती है। पैर की टांगें भी एक-दूसरे पर रखी जाती हैं जिससे कि ऊर्जा तुम्हारे अपने शरीर में बहती रहती है और रिसती नहीं है।
आंखें बंद रहती हैं क्योंकि आंखें बाहर छोड़ती हैं तुम्हारी प्राण-ऊर्जा के लगभग अस्सी प्रतिशत को। इसीलिए यदि तुम लगातार यात्रा कर रहे होते हो और तुम कार या रेलगाडी से बाहर देखते रहते हो, तो तुम बहुत थका हुआ अनुभव करोगे। यदि तुम आंखें बंद रख यात्रा करते हो, तो तुम ज्यादा थकान अनुभव नहीं करोगे। और तुम अनावश्यक चीजों की ओर देखते जाते हो, दीवारों के विज्ञापनों तक को पढ़ते हो! तुम अपनी आंखें बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हो, और जब आंखें थकान से भरी होती हैं तो सारा शरीर शका हुआ होता है। आंखें यह संकेत दे देती हैं कि अब यह बहुत हुआ।
जितना ज्यादा से ज्यादा संभव हो, योगी आंखें बंद किये रखने की कोशिश करता है। साथ ही हाथों और टांगो को परस्पर मिलाये रहता है, ताकि इन हिस्सों से ऊर्जा इकट्ठी पहुंचे। वह रीढ़ की हड्डी सीधे किये बैठा रहता है। यदि रीढ़ सीधी होती है और तुम बैठे हुए हो, तो तुम ज्यादा ऊर्जा बनाये रखोगे किसी अन्य तरीके की अपेक्षा। क्योंकि जब रीढ़ सीधी बनी रहती है, तो पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण तुममें से बहुत ऊर्जा नहीं ले सकता। गुरुत्वाकर्षण रीढ़ के आधार पर केवल एक स्थल का स्पर्श करता है। जब तुम झुकी हुई मुद्रा में बैठे हुए होते हो, अधलेटे झुके हुए, तो तुम सोचते हो, तुम आराम कर रहे हो। लेकिन पतंजलि कहते हैं, तुम ऊर्जा बाहर निकाल रहे हो, क्योंकि तुम्हारे शरीर का ज्यादा भाग तो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में होता है।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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