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Sunday, August 16, 2015

5—सुने गये स्वर—माधुर्य को अपनी स्मृति में अंकित करो। साधनासूत्र

5—सुने गये स्वर—माधुर्य को अपनी स्मृति में अंकित करो।
 जब तक तुम केवल मानव हो,
तब तक उस महा—गीत के कुछ अंश ही तुम्हारे कानों तक पहुंचते हैं।
परंतु यदि तुम ध्यान देकर सुनते हो,
तो उन्हें ठीक—ठीक स्मरण रखो;
जिससे कि जो कुछ तुम तक पहुंचा है, वह खो न जाए।
और उससे उस रहस्य का आशय समझने का प्रयत्न करो,
जो रहस्य तुम्हें चारों ओर से घेरे हुए है। एक समय आएगा,
जब तुम्हें किसी गुरु की आवश्यकता न होगी।
क्योंकि जिस प्रकार व्यक्ति को वाणी की शक्ति है,
उसी प्रकार उस सर्वव्यापी अस्तित्व में भी यह शक्ति है,
जिसमें व्यक्ति का अस्तित्व है।
  1. और उन स्वर—लहरियों से स्वर—बद्धता का पाठ सीखो
जीवन की अपनी भाषा है और वह कभी मूक नहीं रहता,
और उसकी वाणी एक चीत्कार नहीं है,
जैसा कि तुम जो बहरे हो, कदाचित समझो।
वह तो एक गीत है।
उससे सीखो कि तुम स्वयं उस सुस्वरता (हार्मनी) के अंश हो,
और उससे सुस्वरता के नियमों का पालन करना सीखो।

साधनासूत्र 

ओशो 

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