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Monday, August 31, 2015

लाओत्से और च्वांगत्सु

लाओत्से अपने शिष्यों की परीक्षाएं लिया करता था। वह उनको सवाल देता, वे ठीक जवाब ले आते और लाओत्से फाड़ कर फेंक देता। क्योंकि उनके पेट पर हाथ रख कर देखता और कहता, सवाल बेकार गया, जवाब गलत है। एक युवक आया हुआ था और उसने लाओत्से से कहा, तुम पागल तो नहीं हो! तुमने जो समझाया था, ठीक वही-वही लिख कर लाया हूं। लाओत्से ने कहा, वह तो बिलकुल ठीक है, लेकिन जो लिख कर लाया है, उसकी श्वास! उसकी श्वास नाभि से नहीं चल रही है। और यह जवाब तो तभी आ सकता है भीतर से, जब श्वास नाभि से चल रही हो। तुम मुझे सुन कर ले लाए हो। यह बुद्धि से सुना गया था, बुद्धि से दे दिया गया है। तुम्हारे भीतर इसका कोई भी अनुभव नहीं है।

च्वांगत्सु जब उसके पास पहुंचा, उसका सबसे बड़ा शिष्य, तो लाओत्से ने उसे सब समझाया और उसने सब सुना। और जब उसकी परीक्षा का वक्त आया, तो जैसे कि सभी शिष्य अपने कागजात लेकर आते थे जवाब देने के लिए, वह बिना कागजात खाली हाथ आकर बैठ गया। लाओत्से ने कहा कि आज तुम्हारी परीक्षा का दिन है और मैं कुछ पूछूंगा; जवाब लिखने के लिए कुछ लाए नहीं? च्वांगत्से ने कहा कि अगर मैं जवाब नहीं हूं, तो मेरे लिखे हुए जवाबों का क्या उपयोग होगा! उसने अपने कपड़े उतार दिए और नग्न होकर सामने लेट गया। उसने कहा कि तुम मेरी श्वास देख लो।

और ध्यान रहे, अगर नाभि से सच्ची श्वास नहीं चलने लगी है और आप सिर्फ कोशिश करके चलाते रहे हैं, तो जब कोई आपके पेट पर हाथ रखेगा, फौरन श्वास सीने से चलने लगेगी। फौरन! जैसे ही आप कांशस हो जाएंगे, श्वास आपकी सीने से चलने लगेगी। वह तो बच्चे जैसे सरल ही न हो गए हों कि कोई पेट पर हाथ रखे या कुछ भी करे, श्वास वहीं से चलती ही है। डाक्टर जब आपका हाथ अपने हाथ में लेकर नाड़ी नापता है, तो आप कभी यह मत सोचना कि नाड़ी उतनी ही होती है जितनी डाक्टर को पता चलती है। डाक्टर को भी कम से कम थोड़ा उसे घटा लेना चाहिए; उतनी नहीं होती। वह डाक्टर के पकड़ने से बढ़ती है। बढ़ेगी ही, क्योंकि आप सचेतन हो गए, आप कांशस हो गए। घबड़ाहट आ गई। तनाव बढ़ गया। तो बीमारी जब डाक्टर जांचता है तो उसे यह नहीं समझना चाहिए बीमारी इतनी ही होगी, थोड़ी ज्यादा मालूम होती है। क्योंकि उतनी घबड़ाहट भी बढ़ गई होती है भीतर।

च्वांगत्सु लेट गया और उसने कहा, मेरी श्वास देख लो। तो उसका पेट ऊपर-नीचे गिर रहा है। वह एक छोटे बच्चे की तरह लेटा है। और लाओत्से कहता है कि तू उत्तीर्ण हो गया है। अब मुझे कुछ पूछना नहीं है। क्योंकि जो जवाब दे सकता है, अब तेरे भीतर मौजूद है।

बुद्धि से हटाना है चेतना को और नाभि की तरफ ले आना है।

हमारा सारा संस्कार, हमारी सारी शिक्षा, सारा समाज चेतना को बुद्धि की तरफ ले जाने की कोशिश में लगा रहता है। उपयोग है उसका, जैसा मैंने कहा। लेकिन एक दिन हमें उस उपयोग से वापस लौट आना जरूरी है। मूल केंद्र को खो देना किसी भी कीमत पर खतरनाक है। और किसी भी कीमत पर मूल केंद्र को पा लेना सस्ता है।

तो लाओत्से के इस सूत्र को साधना का सूत्र समझें। अपनी श्वास का ध्यान रखें और श्वास के रूपांतरण की कोशिश करें। श्वास की बदलाहट आपकी बदलाहट हो जाएगी। श्वास में क्रांति आपके स्वयं के व्यक्तित्व की क्रांति हो जाएगी। और जैसे-जैसे श्वास गहरी होने लगेगी, आपकी गहराई बढ़ने लगेगी, आपका उथलापन समाप्त हो जाएगा। और जिस दिन श्वास केंद्र पर होगी, उस दिन आप सारे जगत के साथ एक अद्वैत के बिंदु पर मिल जाएंगे।

अपने केंद्र पर जो आ गया, वह जगत के केंद्र पर आ जाता है। स्वयं के केंद्र पर जो डूब गया, वह विराट के केंद्र से एक हो जाता है। तो एक परम आलिंगन अद्वैत का फलित होता है। और जैसे-जैसे आपकी श्वास गहरी और भीतर-भीतर उतरने लगती है, वैसे-वैसे रहस्य के नए पर्दे और सत्य के नए द्वार खुलने शुरू हो जाते हैं। जो मनुष्य के भीतर छिपा है, वही विराट में विस्तीर्ण होकर फैला हुआ है। जो अपने भीतर गहरे उतर आता है, वह परम के भीतर ऊंचा उठ जाता है।

ताओ उपनिषाद (भाग–2) प्रवचन–24


 

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