सूत्र:
9—अपनी अंतरात्मा का पूर्णरूप से सम्मान करो।क्योंकि तुम्हारे हृदय के द्वारा वह प्रकाश प्राप्त होता है,
जो जीवन को आलोकित कर सकता है
और उसे तुम्हारी आंखों के समक्ष स्पष्ट कर सकता है।
समझने में कठिन केवल एक ही वस्तु है—
स्वयं तुम्हारा अपना हृदय।
जब तक व्यक्तित्व के बंधन ढीले नहीं होते,
तब तक आत्मा का गहन रहस्य खुलना आरंभ नहीं होता है।
जब तक तुम उससे अलग एक ओर खड़े नहीं होते,
तब तक वह अपने को तुम पर प्रकट नहीं करेगा।
तभी तुम उसे समझ सकोगे और उसका पथ—प्रदर्शन कर सकोगे,
उससे पहले नहीं। तभी तुम उसकी समस्त शक्तियों का उपयोग कर सकोगे
और उन्हें किसी योग्य सेवा में लगा सकोगे, उससे पहले नहीं।
जब तक तुम्हें स्वयं कुछ निश्चय नहीं हो जाता,
तुम्हारे लिए दूसरों की सहायता करना असंभव है।
जब तुमको आरंभ के पंद्रह नियमों का ज्ञान हो चुकेगा
और तुम अपनी शक्तियों को विकसित
और अपनी इंद्रियों को उन्मुक्त करके ज्ञान मंदिर में प्रविष्ट हो जाओगे,
तब तुम्हें ज्ञात होगा कि तुम्हारे भीतर एक स्रोत है,
जहां से वाणी मुखरित होगी।
ये बातें केवल उनके लिए लिखी गयी हैं,
जिनको मैं अपनी शांति देता हूं और जो लोग,
जो कुछ मैंने लिखा है
उसके बाह्य अर्थ के अतिरिक्त उसके भीतरी अर्थ को भी साफ समझ सकते हैं।
साधनसूत्र
ओशो
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