....हिंदुस्तान से एक आदमी
जर्मनी लौटा- काउंट कैसरलिन, तो उसने अपनी डायरी में लिखा कि हिंदुस्तान
में जाकर मुझे पहली दफा पता चला कि स्वास्थ्य एक अनैतिकता है, बीमार होना
नैतिकता है। और हिंदुस्तान में जाकर मुझे पता चला कि अस्वच्छ रहना, गंदगी
से रहना अध्यात्म है। स्वच्छ रहना और ताजे रहना, साफ-सुधरे रहना भौतिकवाद
है, मैटीरियलिज्म है।
नहीं, यह सब हमें बदल देना पड़ेगा। एक नयी नीति- स्वस्थ, सुखी आदमी को, मुस्कराते आदमी को स्वीकार करेगी। हमें बुद्ध और महावीर की नयी मूर्तियाँ ढालनी होंगी, जिनमें वे खिलखिलाकर हंस रहे हों। अब उदास महावीर और उदास बुद्ध नहीं चल सकते हैं। ईसाई तो कहते हैं कि जीसस कभी हँसे ही नहीं क्योंकि हँसने जैसी छोटी-ओछी चीज जीसस कर सकते थे! उनकी किताबें कहती हैं, 'जीसस नैवर लाफ्ड'- हँसे ही नहीं कभी जिंदगी में। तो उन्होंने जीसस को जैसा बनाया..देखा होगा सूली पर लटके हुए। अगर वे न भी लटकाते तो ईसाई उनको लटता देते, क्योंकि गंभीर आदमी को सूली पर लटका होना चाहिए। लेकिन अब हम जीसस को हँसाकर रहेंगे। हमें जीसस की नयी तस्वीरें बनानी पड़ेंगी, जिसमें वे हँस रहा हों, फूल के बगीचे में खड़े हों।
नये आदमी को सुखी और स्वस्थ्य और आनंदित- इस पृथ्वी पर, स्वर्ग में नहीं, इस पृथ्वी पर सुख और स्वास्थ्य को स्वीकार करना पड़ेगा तो हम एक विधायक नीति के आधार रख सकते हैं। मुझे कोई कारण नहीं दिखायी पड़ता कि ये आधार क्यों नहीं रखे जा सकते हैं। मैं आपसे इतनी ही प्रार्थना करूँगा, इन दिशाओं में सोचें। बड़ा सवाल है, जिंदगी के सामने बड़ी समस्या है कि नयी नीति को कैसे जन्म दें। इन दिशाओं में सोचें। शायद हम सब सोचें तो हम कुछ रास्ते खोज लें।
मैं कोई उपदेश देनेवाला नहीं हूँ कि आपको उपदेश दूँ और आप ग्रहण कर लें। वह मामला छोड़ें, वह गुरु-शिष्य का संबंध गया। अब कोई उपदेश देगा, कोई ग्रहण करेगा, यह सवाल नहीं है। हम सब इकट्ठे होकर सोच सकें, हम सब मित्र की तरह साथ सोच सकें, और नये मनुष्य की रूपरेखा निर्मित कर सकें, इस दिशा में मैंने कुछ बातें कहीं। मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना, उससे बहुत अनुग्रहीत हूँ और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूँ, मेरे प्रणाम स्वीकार करें!
भारत के जलते प्रश्न
ओशो
नहीं, यह सब हमें बदल देना पड़ेगा। एक नयी नीति- स्वस्थ, सुखी आदमी को, मुस्कराते आदमी को स्वीकार करेगी। हमें बुद्ध और महावीर की नयी मूर्तियाँ ढालनी होंगी, जिनमें वे खिलखिलाकर हंस रहे हों। अब उदास महावीर और उदास बुद्ध नहीं चल सकते हैं। ईसाई तो कहते हैं कि जीसस कभी हँसे ही नहीं क्योंकि हँसने जैसी छोटी-ओछी चीज जीसस कर सकते थे! उनकी किताबें कहती हैं, 'जीसस नैवर लाफ्ड'- हँसे ही नहीं कभी जिंदगी में। तो उन्होंने जीसस को जैसा बनाया..देखा होगा सूली पर लटके हुए। अगर वे न भी लटकाते तो ईसाई उनको लटता देते, क्योंकि गंभीर आदमी को सूली पर लटका होना चाहिए। लेकिन अब हम जीसस को हँसाकर रहेंगे। हमें जीसस की नयी तस्वीरें बनानी पड़ेंगी, जिसमें वे हँस रहा हों, फूल के बगीचे में खड़े हों।
नये आदमी को सुखी और स्वस्थ्य और आनंदित- इस पृथ्वी पर, स्वर्ग में नहीं, इस पृथ्वी पर सुख और स्वास्थ्य को स्वीकार करना पड़ेगा तो हम एक विधायक नीति के आधार रख सकते हैं। मुझे कोई कारण नहीं दिखायी पड़ता कि ये आधार क्यों नहीं रखे जा सकते हैं। मैं आपसे इतनी ही प्रार्थना करूँगा, इन दिशाओं में सोचें। बड़ा सवाल है, जिंदगी के सामने बड़ी समस्या है कि नयी नीति को कैसे जन्म दें। इन दिशाओं में सोचें। शायद हम सब सोचें तो हम कुछ रास्ते खोज लें।
मैं कोई उपदेश देनेवाला नहीं हूँ कि आपको उपदेश दूँ और आप ग्रहण कर लें। वह मामला छोड़ें, वह गुरु-शिष्य का संबंध गया। अब कोई उपदेश देगा, कोई ग्रहण करेगा, यह सवाल नहीं है। हम सब इकट्ठे होकर सोच सकें, हम सब मित्र की तरह साथ सोच सकें, और नये मनुष्य की रूपरेखा निर्मित कर सकें, इस दिशा में मैंने कुछ बातें कहीं। मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना, उससे बहुत अनुग्रहीत हूँ और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूँ, मेरे प्रणाम स्वीकार करें!
भारत के जलते प्रश्न
ओशो
No comments:
Post a Comment