कल जो ध्यान आया था, उसे अगर तुम आज मांगोगे, तो वह नहीं आएगा। क्योंकि
आनंद जबर्दस्ती नहीं लाया जा सकता है। उसकी कोई अपेक्षा भी नहीं की जा
सकती। उसके लिए अगर तुमने अपेक्षा की, तो तुम इतने तन जाओगे कि वह नहीं
आएगा।
इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि पहली दफा जो लोग ध्यान शुरू करते हैं, तो उन्हें जैसा आनंद अनुभव होता है, फिर उन्हें बाद में नहीं होता। उसका कारण वे खुद ही हैं। क्योंकि जो पहली दफा उनको अनुभव में आया, उस वक्त तो कोई प्रतीक्षा भी नहीं थी, उन्हें पता भी नहीं था, कोई तनाव भी नहीं था कि आना चाहिए। नहीं आया तो दुखी हो जाएंगे, यह भी नहीं था। कुछ पता ही नहीं था। वे भोले भाले थे। उस भोले भाले अपेक्षा रहित मन में आनंद उतरा था।
एक दफे आनंद उतर आया, तो अब उनकी अपेक्षा है। ध्यान में खड़े होते हैं, तो उनकी शर्त है कि अब आनंद आना चाहिए। अब वे तने हुए हैं, अब वे खिंचे हुए हैं। अब ध्यान नहीं कर रहे हैं, अब वे सिर्फ आनंद की मांग कर रहे हैं। पहली दफा आया था, तब कोई मांग नहीं थी, अब मांग है। अब वह न आएगा। आपने उसकी बुनियादी आधारशिला बदल ली।
इस सूत्र का यह अर्थ नहीं है कि जो मिला है, उसको मांगो। इस सूत्र का अर्थ है, जो भी मिला है, उसको जीयो, स्मरण करो। लेकिन उसकी पुनरुक्ति की मांग मत करो, तो वह पुनरुक्त होगा। उसको मांगो मत, तो वह मिलेगा। उसको जबर्दस्ती लाने की कोशिश मत करो। क्योंकि जीवन में जो भी श्रेष्ठ है, उसके साथ जबर्दस्ती नहीं हो सकती। सिर्फ निकृष्ट के साथ जबर्दस्ती हो सकती है। श्रेष्ठ के साथ जबर्दस्ती नहीं हो सकती। तुमने जबर्दस्ती की कि वह टूट जाएगा।
पहले दिन जब तुम ध्यान में उतरे हो, तो जो सुख अनुभव होता है, वह दूसरे दिन नहीं होगा। क्योंकि दूसरे दिन तुम तैयारी से आ रहे हो कि अब सुख लेने जा रहे हैं। यह तैयारी पहले दिन नहीं थी, ध्यान रखो। दूसरे दिन भी उसी तरह गैर-तैयार आओ, जैसे पहले दिन आए थे, और भी बड़ा सुख घटेगा। तीसरे दिन और भी गैर-तैयार हो कर आओ। मांग ही मत करो, सिर्फ ध्यान करो। पूछो ही मत कि अब यह कब होगा? यह बात ही मत उठाओ। तुम तो सिर्फ ध्यान करो, यह बढ़ता जाएगा।
इस सूत्र का अर्थ है कि जो तुम्हारा सुख है, उसे इकट्ठा करो। उसे पुन: जीयो, लेकिन उसकी पुनरुक्ति की कामना मत करना। पुन: जीने का मतलब है कि पीछे से जो तुमने इकट्ठा किया है, उसका बार-बार स्वाद लो, उसकी जुगाली करो। भैंस-गाय जुगाली करना जानती हैं, वह सीखो। वह भोजन कर लेती हैं, फिर उसकी जुगाली करती हैं, बार-बार चबाती हैं। जो सुख का अनुभव हो, उसकी जुगाली करो।
दुख के अनुभव की तुम काफी करते हो, इसलिए जुगाली तो तुम जानते ही हो। कोई आदमी एक दफा गाली दे दे, तो तुम पचास बार उसकी गाली अपने भीतर दोहराते हो, कि उसने ऐसा कहा। फिर फिर तुम जोश में आ जाते हो। क्या लेना है? उसने एक दफा दिया, तुम पचास दफे दे रहे हो! रात तुम्हें नींद नहीं आती कि उसने गाली दी। अब तुम उसकी जुगाली किए जा रहे हो। गाली में इतना क्या रस है? जरा सा दुख हो जाए, तो तुम फिर उसको सोचते ही चले जाते हो, सोचते ही चले जाते हो, कि ऐसा क्यों हुआ, ऐसा नहीं होना था!
सुख की इस भांति जुगाली करो। दुख की जुगाली करके तुमने खूब दुख बढ़ा लिया है। तो सुख की जुगाली करो, और खूब सुख बढ़ जाएगा। लेकिन मांग मत करो। भविष्य में तो जाओ खाली। अतीत से रस को खींच लो पूरा अपने प्राणों में, लेकिन भविष्य में जाओ खाली, शून्य। वह जो अतीत से तुम सुख का रस खींच रहे हो, वह तुम्हें भविष्य के लिए तैयार कर रहा है। तुम्हें मांगने की जरूरत नहीं है, तुम्हारा सुख बढ़ता चला जाएगा।
साधनसूत्र
ओशो
इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि पहली दफा जो लोग ध्यान शुरू करते हैं, तो उन्हें जैसा आनंद अनुभव होता है, फिर उन्हें बाद में नहीं होता। उसका कारण वे खुद ही हैं। क्योंकि जो पहली दफा उनको अनुभव में आया, उस वक्त तो कोई प्रतीक्षा भी नहीं थी, उन्हें पता भी नहीं था, कोई तनाव भी नहीं था कि आना चाहिए। नहीं आया तो दुखी हो जाएंगे, यह भी नहीं था। कुछ पता ही नहीं था। वे भोले भाले थे। उस भोले भाले अपेक्षा रहित मन में आनंद उतरा था।
एक दफे आनंद उतर आया, तो अब उनकी अपेक्षा है। ध्यान में खड़े होते हैं, तो उनकी शर्त है कि अब आनंद आना चाहिए। अब वे तने हुए हैं, अब वे खिंचे हुए हैं। अब ध्यान नहीं कर रहे हैं, अब वे सिर्फ आनंद की मांग कर रहे हैं। पहली दफा आया था, तब कोई मांग नहीं थी, अब मांग है। अब वह न आएगा। आपने उसकी बुनियादी आधारशिला बदल ली।
इस सूत्र का यह अर्थ नहीं है कि जो मिला है, उसको मांगो। इस सूत्र का अर्थ है, जो भी मिला है, उसको जीयो, स्मरण करो। लेकिन उसकी पुनरुक्ति की मांग मत करो, तो वह पुनरुक्त होगा। उसको मांगो मत, तो वह मिलेगा। उसको जबर्दस्ती लाने की कोशिश मत करो। क्योंकि जीवन में जो भी श्रेष्ठ है, उसके साथ जबर्दस्ती नहीं हो सकती। सिर्फ निकृष्ट के साथ जबर्दस्ती हो सकती है। श्रेष्ठ के साथ जबर्दस्ती नहीं हो सकती। तुमने जबर्दस्ती की कि वह टूट जाएगा।
पहले दिन जब तुम ध्यान में उतरे हो, तो जो सुख अनुभव होता है, वह दूसरे दिन नहीं होगा। क्योंकि दूसरे दिन तुम तैयारी से आ रहे हो कि अब सुख लेने जा रहे हैं। यह तैयारी पहले दिन नहीं थी, ध्यान रखो। दूसरे दिन भी उसी तरह गैर-तैयार आओ, जैसे पहले दिन आए थे, और भी बड़ा सुख घटेगा। तीसरे दिन और भी गैर-तैयार हो कर आओ। मांग ही मत करो, सिर्फ ध्यान करो। पूछो ही मत कि अब यह कब होगा? यह बात ही मत उठाओ। तुम तो सिर्फ ध्यान करो, यह बढ़ता जाएगा।
इस सूत्र का अर्थ है कि जो तुम्हारा सुख है, उसे इकट्ठा करो। उसे पुन: जीयो, लेकिन उसकी पुनरुक्ति की कामना मत करना। पुन: जीने का मतलब है कि पीछे से जो तुमने इकट्ठा किया है, उसका बार-बार स्वाद लो, उसकी जुगाली करो। भैंस-गाय जुगाली करना जानती हैं, वह सीखो। वह भोजन कर लेती हैं, फिर उसकी जुगाली करती हैं, बार-बार चबाती हैं। जो सुख का अनुभव हो, उसकी जुगाली करो।
दुख के अनुभव की तुम काफी करते हो, इसलिए जुगाली तो तुम जानते ही हो। कोई आदमी एक दफा गाली दे दे, तो तुम पचास बार उसकी गाली अपने भीतर दोहराते हो, कि उसने ऐसा कहा। फिर फिर तुम जोश में आ जाते हो। क्या लेना है? उसने एक दफा दिया, तुम पचास दफे दे रहे हो! रात तुम्हें नींद नहीं आती कि उसने गाली दी। अब तुम उसकी जुगाली किए जा रहे हो। गाली में इतना क्या रस है? जरा सा दुख हो जाए, तो तुम फिर उसको सोचते ही चले जाते हो, सोचते ही चले जाते हो, कि ऐसा क्यों हुआ, ऐसा नहीं होना था!
सुख की इस भांति जुगाली करो। दुख की जुगाली करके तुमने खूब दुख बढ़ा लिया है। तो सुख की जुगाली करो, और खूब सुख बढ़ जाएगा। लेकिन मांग मत करो। भविष्य में तो जाओ खाली। अतीत से रस को खींच लो पूरा अपने प्राणों में, लेकिन भविष्य में जाओ खाली, शून्य। वह जो अतीत से तुम सुख का रस खींच रहे हो, वह तुम्हें भविष्य के लिए तैयार कर रहा है। तुम्हें मांगने की जरूरत नहीं है, तुम्हारा सुख बढ़ता चला जाएगा।
साधनसूत्र
ओशो
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