तिब्बत में एक कहावत है : ‘जो अज्ञानी हैं वे सौभाग्यशाली हैं, क्योंकि वे यह सोच कर प्रसन्न हैं कि वे सब कुछ जानते हैं।’
प्रत्येक बात को जान लेने के प्रयास से कोई सहायता नहीं मिलने जा रही
है, यह सारे मामले से चूक जाना है। अपने स्व को जान लेने का प्रयास
पर्याप्त है। यदि तुम अपने स्वयं के अस्तित्व को जान सको तो तुमने सभी कुछ
जान लिया है, क्योंकि अब तुम समग्र के साथ भागीदारी करते हो, तुम्हारा
स्वभाव समग्र का स्वभाव है।
तुम पानी की एक बूंद के समान हो। यदि तुम पानी की एक बूंद को जान लो तो
तुमने अतीत, वर्तमान और भविष्य के सभी महासागरों को जान लिया है। पानी की
एक बूंद में ही सागर का पूरा स्वभाव उपस्थित है।
वह व्यक्ति जो जानकारी के पीछे पड़ जाता है, लगातार स्वयं को भूलता रहता
है और सूचनाओं का संचय करता चला जाता है। संभवत: वह बहुत अधिक जानता है,
लेकिन फिर भी वह अज्ञानी बना रहेगा। इसलिए अज्ञान जानकारी का विरोधी नहीं
है, अज्ञान को जानकारी से नहीं मिटाया जा सकता है। तब अज्ञान को मिटाने का
क्या उपाय है? योग कहता है : सजगता, न कि जानकारी, जानना नहीं, स्वयं को
बाहर केंद्रित नहीं करना बल्कि ज्ञान के अंतस्रोत पर केंद्रित कर देना।
जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो वह पूर्ण सुप्तावस्था में होता है।
मां के गर्भ में आरंभ के महीने गहन निद्रा, जिसे योग सुषुप्ति, स्वप्न
विहीन निद्रा कहता है, के होते हैं। फिर लगभग छठे माह के अंत या सातवें माह
के आरंभ में बच्चा थोड़े बहुत स्वप्न देखना शुरू कर देता है। निद्रा में
बाधा पड़ने लगती है, यह पूर्ण नहीं रह पाती। बाहर कुछ होता हैं: जरा सा शोर
और बच्चे की निद्रा बाधित हो जाती है। बाहर उत्पन्न कंपन उस तक पहुंच जाते
हैं और उसकी गहन निद्रा में विक्षेप उत्पन्न हो जाता है और वह स्वप्न देखना
आरंभ कर देता है। स्वप्न की पहली तरंगिकाए उठती हैं। स्वप्न विहीन निद्रा
चेतना की पहली अवस्था है।
दूसरी अवस्था है : निद्रा और स्वप्न। दूसरी अवस्था में निद्रा बनी रहती
है लेकिन एक नया आयाम सक्रिय हो जाता है : स्वप्न देखने का आयाम। फिर बच्चे
का जन्म हो जाता है तो एक तीसरे आयाम का उदय होता है, जिसे हम सामान्यत:
जागृति की अवस्था कहते हैं। यह वास्तव में जागृति की अवस्था नहीं है बल्कि
एक नया आयाम सक्रिय हो जाता है और वह आयाम है विचार का। बच्चा सोचना आरंभ
कर देता है।
पहली अवस्था स्वप्न रहित निद्रा की थी, दूसरी अवस्था थी निद्रा और
स्वप्न, तीसरी अवस्था है निद्रा, और स्वप्न, और विचार, किंतु निद्रा अब भी
रहती है। निद्रा पूरी तरह टूट नहीं गई है। तुम अपने सोचने के समय भी निद्रा
में बने रहते हो। तुम्हारा सोचना और कुछ नहीं बल्कि स्वप्न देखने का एक और
ढंग है, निद्रा बाधित नहीं होती है। ये सामान्य अवस्थाएं हैं।
कभी कोई
बिरला व्यक्ति ही तीसरी, सोचने की अवस्था से ऊपर उठ पाता है। और योग का
लक्ष्य यही है: शुद्ध जागरूकता की अवस्था, जो इतनी शुद्ध है जितनी कि पहली
अवस्था पर पहुंचना। पहली अवस्था शुद्ध निद्रा की है और अंतिम अवस्था शुद्ध
जागरूकता, शुद्ध जागृति की है। एक बार तुम्हारी जागरूकता उतनी शुद्ध हो जाए
जितनी कि तुम्हारी गहन निद्रा है, तुम बुद्ध बन जाते हो, तुमने पा लिया
है, तुम घर लौट आए हो।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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ओशो
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