कैसे प्रेम
फैलेगा? झुकने
से फैलता है।
अहंकारी आदमी
प्रेम नहीं कर
सकता है। जीवन
का साधारण
प्रेम भी
अहंकारी आदमी
नहीं कर सकता,
क्योंकि
प्रेम के लिए
झुकना
अनिवार्य
शर्त है। तुम
तो प्रेम में
भी दूसरे को
झुकाने की
कोशिश लगे
रहते हो। यही
पति—पत्नी का
संघर्ष है
सारी दुनिया
में, दोनों
एक दूसरे को
झुकाने की
कोशिश में लगे
होते हैं। पति
चाहता है
पत्नी को झुका
ले, पत्नी
चाहती है पति
को झुका ले।
उनकी सारी
कूटनीति, प्रत्यक्ष—परोक्ष
में एक ही
होती है, कैसे
दूसरे को झुका
लें। अच्छे—
अच्छे बहाने
खोजे जाते हैं
दूसरे को
झुकाने के लिए।
पत्नी अपने
ढंग से खोजती
है; उसके
ढंग स्त्रैण
होते हैं।
लेकिन वह भी
झुकाने की
तरकीबें
खोजती रहती है।
स्त्रैण होने
के कारण उसके
ढंग बड़े
परोक्ष होते
हैं, प्रत्यक्ष
नहीं होते।
पति को
अगर पत्नी को
झुकाना है तो
वह कभी—कभी
पत्नी को सीधा
मार देता है।
पत्नी को अगर
पति को झुकाना
है तो वह अपने
को पीट लेती
है। फर्क जरा
भी नहीं है।
प्रयोजन एक ही
है। और
निश्चित ही
पत्नी ज्यादा
जीतती है, क्योंकि
परोक्ष, उसके
मार्ग
सूक्ष्म हैं।
पति के जरा
आदिम हैं, ज्यादा
सुसंस्कृत
नहीं हैं, स्त्री
का मार्ग
ज्यादा
सुसंस्कृत है।
इसलिए वह
जीतती है।
उसका मार्ग
ज्यादा कोमल
है। उसको अगर
पति को जीतना
है तो वह रोने
लगती है। पति
को अगर पत्नी
पर कोई विरोध
हुआ है, तो
वह क्रोधित
होता है।
पत्नी उदास
होती है।
उदासी क्रोध
का छिपा हुआ
ढंग है।
यह तुम
चकित होओगे
जानकर कि उदास
आदमी क्रोध को
दबा रहा है, इसलिए उदास
है। वह दबा
हुआ क्रोध है,
वह पी गया क्रोध
है। लेकिन जब
कोई उदास होता
है तो दया
ज्यादा आती है।
कोई क्रोध कर
रहा हो तो
उससे तो लड़ने
की भी सुविधा
है, लेकिन
कोई क्रोध न
कर रहा हो, सिर्फ
रो रहा हो, तो
उससे कैसे
लड़ोगे? इसलिए
सौ में
निन्यानबे
पुरुष हार
जाते हैं। जो
एकाध जीतता है,
वह एकदम
बिलकुल ही हिंस
प्रकृति का हो
तो ही जीत
पाता है, एकदम
पाशविक
वृत्ति का हो
तो ही जीत
पाता है। नहीं
तो सभी हारते
हैं।
सिर्फ एक आदमी उस लाइन में खड़ा हुआ जो अपनी स्त्रियों का मालिक था और बाकी सब उस लाइन में खड़े हो गये जहा स्त्रियों के गुलामों को खड़ा होना था। बादशाह हैरान हुआ। फिर भी उसने कहा कि चलो, यह भी क्या कम है। क्योंकि बीरबल तो कहता था, सौ प्रतिशत, मगर एक आदमी तो कम से कम है। मैं तुमसे पूछता हूं कि तुम उस लाइन में क्यों खड़े हो? तुम्हें पक्का भरोसा है? उस आदमी ने कहा, भरोसा इत्यादि कुछ नहीं है, जब मैं घर से चलने लगा, मेरी औरत ने कहा— भीड़— भाड़ में खड़े मत होना। मुझे कुछ पता नहीं है, मैं तो सिर्फ उसकी आज्ञा का पालन कर रहा हूं।
सदा ही कोमल जीत जाएगा कठोर पर। पानी जीत जाता है चट्टान पर। मगर जीत की चेष्टा चल रही है, संघर्ष चल रहा है। पति—पत्नी के बीच जो शाश्वत कलह है, वह यही है। प्रेम में यह कलह? फिर प्रेम कैसे फलेगा? इसलिए प्रेम कहां फलता है! पति—पत्नी लड़ते रहते हैं और मर जाते हैं; प्रेम कहां फलता है! बाप—बेटे में संघर्ष चलता है, भाई— भाई में संघर्ष चलता है, प्रेम कहां फल पाता है! प्रेम वहीं फलता है जहा कोई अपने अहंकार को स्वेच्छा से विसर्जित करता है। हार कर नहीं, स्वेच्छा से; स्वयं अपने से। कहता है, मुझे तुमसे प्रेम है तो तुमसे लड़ना क्या? तुमसे मुझे प्रेम है तो तुम्हारे लिए मैंने अपना अहंकार छोड़ा। तुमसे मेरा कोई संघर्ष नहीं है।
साधारण प्रेम में भी झुकने से ही प्रेम फलता है, तो फिर उस परम प्रेम में, परमात्मा के सामने तो पूरी तरह झुक जाना होगा। इस झुकने की कला का नाम है, नमस्कार, नाम—कीर्तन उसकी याद, उसका गुणगान।
अथातो भक्ति जिज्ञासा
ओशो
No comments:
Post a Comment