संन्यास स्वतंत्रता है। न तो
भाग्य में होता, न नहीं होता। संन्यास भाग्य की, बात ही नहीं है। जो भाग्य
में है, वह तो परतंत्रता है। संन्यास तुम्हारा चुनाव हैं बोधपूर्वक, स्वेच्छा से। कोई व्यक्ति
ऐसा नहीं है कि संन्यास की बात लिखवा कर पैदा हुआ है, कि विधि ने लिख दी है कि
संन्यासी होगा, कि विधि ने लिख दिया कि संन्यासी नहीं होगा। संन्यास विधि
के बाहर है। संन्यास एकमात्र चीज है जो विधि के बाहर है। बाकी सारी चीजें करीब करीब
नियत हैं।
तुम कितने
दिन जिंदा रहोगे, नियत है। तुम्हारे माँ बाप से कितनी तुम्हें उम्र मिली है, वह नियत हो गया, तुम्हारे जन्म में ही नक्शा
मिल गया है। तुम पुरुष होओगे कि स्त्री, वह भी नियत हो गया माँ बाप
के द्वारा। तुम बीमार रहोगे कि स्वस्थ, वह भी बहुत कुछ नियत हो गया
माँ बाप के द्वारा। तुम्हारा रंग क्या होगा, रूप क्या होगा, वह भी नियत हो गया। फिर
तुम्हारी जिंदगी में सारी वासनाएँ हैं वह भी तुम लेकर आए हो। लेकिन एक बात भर तुम
लेकर नहीं आए हो, वह तुम्हारी परम स्वतंत्रता है, कि तुम इस संसार में निर्वाण
को बना सकोगे या नहीं यह तुम्हारी परम स्वतंत्रता है। इसकी कोई नियति नहीं है।
सहजयोग
ओशो
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