..... तुम्हारे बस में नहीं होता। सदगुरु के
हाथ में तुम्हें होना पड़ता है। वही जोखम है। इसलिए जीवित गुरु से जो नहीं जुड़ पाता, वह सिर्फ धोखा दे रहा है, आत्मवचना कर रहा है। वह मुर्दा गुरुओं की
पूजा करके अपने को समझा रहा है कि मैं धार्मिक हूं, लेकिन धार्मिक नहीं है।
जो फूल अब नहीं रहे, उसकी सुवास कैसे रहेगी? जो वृक्ष ही अब नहीं रहे, उनकी छाया में बैठे हो तुम!? किसको धोखा दे रहे हो? जो नदिया सूख गयीं, उनके किनारे बैठे हो कि तुम्हारी प्यास तृप्त हो जायेगी! होश सम्हालों! उन
नदियों को तलाशों जहां जलधार अभी बहती है। उन वृक्षों को खोजो जहां अभी शाखाएं हरे
पत्तों से लदी हैं और जहां फूल खिलते हैं और फल हैं। उन व्यक्तियों को खोजो जहां
अभी परमात्मा बोल रहा है; जहां अभी परमात्मा जाग रहा है; जहां अभी परमात्मा जी रहा है; जहां अभी परमात्मा नाच रहा है। उसी नृत्य
के साथ जुड़ सको तो तुम्हारे जीवन में क्रांति हो सकती है।
पर कृष्ण वेदांत चिंतित मत होना। जैसा मेरे साथ हो रहा है वैसा ही अपेक्षित
है। वैसा ही होता है। वैसा ही होता रहा है। वैसा ही होता रहेगा। इसमें समय मत
गवाओ। इसलिए मेरी उनमें चिंता ही नहीं है पर। भी। मेरी तो सिर्फ उन्हीं की तरफ
सारी जीवन-ऊर्जा लगी है, जो राजी हैं बदलने को। जो मुझे पहचानने
को राजी है बस उनके साथ ही मेरा संबंध है, बाकी से मेरा कोई संबंध नहीं है।
मेरी अपनी दुनिया है। जो मुझे पहचानने को राजी हैं, बस वही मेरी दुनिया है। बाकी दुनिया को उपेक्षा कर देना है।
सदा ही बुद्धों के पास एक अलग दुनिया बसती है-इस दुनिया से बहुत भिन्न उसे
बुद्ध- क्षेत्र कहो, जो भी नाम देना हो दो। वह बुद्ध-
क्षेत्र, जिन - क्षेत्र कहो, उसे जो भी नाम देना हो दो। वह बुद्ध- क्षेत्र,
वह जिन -
क्षेत्र बन रहा है। प्रेमी आते जा रहे हैं, आते जायेंगे। लाखों लोग रूपातरित होने
वाले हैं। और मैं अपनी सारी ऊर्जा और सारी शक्ति उन पौधों पर ही निछा्ंवर करना
चाहता हूं जो तैयार हैं खिलने को। उन बीजों के साथ सिर मारने की मेरी तैयारी नहीं, पत्थर होने की जिन्होंने जिद कर रखी है।
हंसा तो मोती चुने
ओशो
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