इसकी कोई आवश्यकता है ही नहीं: जो सब कुछ बीत गया वह पूरा अतीत
ही एक भ्रम अथवा माया है। यहां अतीत और भ्रम के बीच कोई अंतर है ही नहीं।
जो कुछ गुजर चुका, वह अब सत्य रहा ही नहीं। अब इस बात को बहुत गहराई से समझ
लेना है।
बीता हुआ कल जा चुका, वह अब रहा ही नहीं। अब एक असली गुजर जाने वाले कल
और एक काल्पनिक कल में अंतर क्या रहा? उनमें कोई भी अंतर नहीं है क्योंकि
दोनों का अस्तित्व केवल तुम्हारे मन में है: वह चाहे असली कल हो या काल्पनिक
कल। दोनों एक तरह की कल्पनाएं ही होंगे। एक असली बीतने वाले कल और नकली कल
में क्या अंतर होगा? उनमें कोई भी अंतर नहीं क्योंकि दोनों ही नकली हैं।
इन दोनों का अस्तित्व नहीं क्योंकि दोनों ही नकली हैं। इन दोनों का
अस्तित्व कहीं भी न होकर केवल तुम्हारे मन में है। पूरा अतीत एक भ्रम और
छलावा है, पूरा भविष्य भी एक भ्रम है, क्योंकि वह अभी है ही नहीं, और इन दो
के मध्य वर्तमान है। इसीलिए पूरब में हम पूरे अस्तित्व को एक भ्रम अथवा
माया कहते हैं, क्योंकि दो भ्रमों के मध्य में वास्तविक सत्य का अस्तित्व
कैसे हो सकता है? और आज भी कल होने जा रहा है, आज निरंतर कल में से गुजर
रहा है।
वर्तमान निरंतर अतीत बनता जा रहा है। लेकिन वास्तविक सत्य, भ्रम
कैसे बन सकता है? भविष्य, अतीत में से होकर गुजर रहा है और वर्तमान केवल
उसके गुजरने का एक द्वार है, इसके अतिरिक्त वह कुछ भी नहीं है। भविष्य भी
भ्रम है, अतीत भी एक भ्रम है, द्वार पर केवल एक क्षण के लिए चीजें प्रकट
होकर असली होने लगती हैं। यह किस तरह का सत्य हो सकता है? यह भी भ्रमपूर्ण
है। हिंदू कहते हैं कि सब केवल बाह्य आकृति है, और असली जैसा कुछ भी नहीं
है।
असली और वास्तविक वह होता है जो जीवित रहे। असली सत्य वह होता है जो
हमेशा शाश्वत रूप से यहां होता है। सत्य वह होता है जो समय के पार हो। नकली
और झूठा वह होता है जो समय के अंदर हो। अतीत, समय के अंदर बंदी है।
वर्तमान को झूठा और नकली के रूप में सोचना ही कठिन होगा, लेकिन शुरुआत अतीत
से करो। अतीत को झूठा सोचना बहुत सरल है, क्योंकि वह घटा अथवा नहीं, इससे
क्या फर्क पड़ता है? हो सकता है वह हुआ ही न हो। वह केवल तुम्हारे मन में ही
हो सकता है, वह केवल तुम्हारा विचार हो सकता है कि वैसा कुछ हुआ है। अतीत
के बारे में झूठा या नकली सोचना और ऐसा ही भविष्य के बारे में भी सोचना
बहुत आसान है।
इन दो के बीच ही में वर्तमान का संकरा सेतु है। लेकिन दो नकली
वास्तविकताओं के बीच असली या प्रामाणिक का अस्तित्व कैसे हो सकता है? मध्य
का भाग प्रामाणिक और सत्य कैसे हो सकता है, जब उसके दोनों छोर असत्य और
नकली हैं, और जबकि असली सत्य भी निरंतर भ्रम और अवास्तविकता में बदलता जा
रहा है? नहीं, यह सभी कुछ जो अनुभव किया गया, वह एक कल्पना है, वह एक
स्वप्न की सामग्री है। केवल अनुभव करने वाला व्यक्ति ही सत्य है, केवल
देखने वाला ही सच्चा है। जो देखा गया वह दृश्य एक सपना है, उसका दृष्टा,
साक्षी ही केवल सत्य है।
आनंद योग
ओशो
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