कृष्ण के व्यक्तित्व में साधना जैसा कुछ भी नहीं है। हो नहीं सकता।
साधना में जो मौलिक तत्व है, वह प्रयास है, “इफर्ट’ है। बिना प्रयास के
साधना नहीं हो सकती। दूसरा जो अनिवार्य तत्व है, वह अस्मिता है, अहंकार है।
बिना “मैं’ के साधना नहीं हो सकती, करेगा कौन! कर्ता के बिना साधना कैसे
होगी? कोई करेगा, तभी होगी।
साधना शब्द ठीक से अगर बहुत गहरे में समझें तो अनीश्वरवादियों का है।
साधना शब्द, जिनके लिए कोई परमात्मा नहीं है, आत्मा ही है, साधना शब्द उनका
है। आत्मा साधेगी और पाएगी। उपासना शब्द बिलकुल उलटे लोगों का है। आमतौर
से हम दोनों को एकसाथ चलाए जाते हैं। उपासना शब्द उनका है, जो कहते हैं
आत्मा नहीं, परमात्मा है। सिर्फ उसके पास जाना है, साधना कुछ भी नहीं।
उपासना का मतलब है, पास जाना। पास बैठना–उप-आसन, निकट होते जाना, निकट होते
जाना। और निकट होने का अर्थ है, खुद मिटते जाना, और कोई अर्थ नहीं है। हम
उससे उतने ही दूर हैं, जितने हम हैं। जीवन के परम सत्य से हमारी दूरी,
हमारा “डिस्टेंस’ उतना ही है, जितने हम हैं। जितना हमारा होना है, जितना
हमारा “मैं’ है, जितना हमारा “इगो’ है, जितनी हमारी आत्मा है, उतने ही हम
दूर हैं। जितने हम खोते हैं और विगलित होते हैं, पिघलते हैं और बहते हैं,
उतने ही हम पास होते हैं। जिस दिन हम बिलकुल नहीं रह जाते, उस दिन उपासना
पूरी हो जाती है और हम परमात्मा हो जाते हैं। जैसे बर्फ पानी बन रहा हो, बस
उपासना ऐसी है कि बर्फ पिघल रहा है, पिघल रहा है।
साधना क्या कर रहा है
बर्फ? साधना करेगा तो और सख्त होता चला जाएगा। क्योंकि साधना का मतलब होगा
कि बर्फ अपने को बचाए। साधना का मतलब होगा कि बर्फ अपने को सख्त करे। साधना
का मतलब होगा कि बर्फ और “क्रिस्टलाइज्ड’ हो जाए। साधना का मतलब होगा कि
बर्फ और आत्मवान बने। साधना का मतलब होगा कि बर्फ अपने को बचाए और खोए न।
साधना का अर्थ अंततः आत्मा हो सकता है। उपासना का अर्थ अंततः परमात्मा
है। इसलिए जो लोग साधना से जाएंगे, उनकी आखिरी मंजिल आत्मा पर रुक जाएगी।
उसके आगे की बात वह न कर सकेंगे। वह कहेंगे अंततः हमने अपने को पा लिया।
उपासक कहेगा, अंततः हमने अपने को खो दिया। ये दोनों बातें बड़ी उलटी हैं।
बर्फ की तरह पिघलेगा उपासक और पानी की तरह खो जाएगा। साधक तो मजबूत होता
चला जाएगा। इसलिए कृष्ण के जीवन में साधना का कोई तत्व नहीं है। साधना का
कोई अर्थ ही नहीं है। अर्थ है तो उपासना का है।
कृष्ण स्मृति
ओशो
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