फ्रायड को कोई महात्मा अध्ययन करने को नहीं मिला, मुझे महात्मा अध्ययन करने को मिले। फ्रायड ने तो केवल साधारण आदमियों के अध्ययन पर यह कहा कि आदमी दुखवादी हैं, मैं सैकड़ों महात्माओं को देखकर तुमसे यह कहता हूं कि आदमी तो कुछ भी नहीं है, अगर असली दुखवादी देखना है तो महात्मा! तुम उनकी पूजा भी इसलिए करते हो क्योंकि तुम्हारा तर्क और उनका तर्क मेल खाता है, तुम्हारे गणित समान है। तुम जरा छोटा मोटा धंधा कर रहे हो, वे बड़े व्यापारी हैं। तुम फुटकर काम करते हो, वे थोक करते है। तुम्हारी छोटी परचून की दुकान है, उनका बड़ा विस्तार है, बड़ी फैक्टरी है। तुम छोटे दुख पैदा करते हो वे बड़े दुख पैदा करते है। मात्रा का भेद है, गुण का भेद नहीं है।
इस जगत में अगर तुम दुख ही तलाश करने निकलोगे तो निश्चित दुख पाओगे। जो आदमी काटे ही खोजने निकला है, वह काटे ही खोज लेगा।
जगत में काटे नहीं हैं, ऐसा मैं नहीं कह रहा; काटे है, मगर फूल भी हैं। तुम पर चुनाव है। जो काटे ही काटे चुनेगा, धीरे धीरे उसे फूल दिखाई पड़ने बंद हो जाते है। हो ही जाएंगे। उसकी आखें काटो के साथ संगति बिठा लेती है। तुम जो देखते हो, देखते हो, देखते रहते हो, फिर धीरे धीरे वही देख पाते हो। जो फूलों से संबंध बनाता है, फूलों से मैंत्री बनाता है, उसे धीरे धीरे काटो में भी फूल दिखाई पड़ने लगते हैं।
अथतो भक्ति जिज्ञासा
ओशो
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