एक छोटा बच्चा अगर कोई भूल करता है, तो हम उसे माफ कर देते हैं। हम पाप नहीं कहते, हम कहते हैं कि वह बच्चा है। अभी ठीक करने की क्षमता ही उसमें नहीं है, तो गलत करना माफ किया जाए। एक आदमी शराब पी कर कोई जुर्म कर लेता है, तो अदालत भी माफ कर देती है, क्योंकि उसने बेहोशी में किया है। होश में होता तो हम मानते हैं कि उसमें ठीक करने की क्षमता भी थी। जब क्षमता ही न थी तो फिर गलत का जुम्मा भी नहीं रह जाता। एक आदमी पागल सिद्ध हो जाए तो बड़े से बड़ा जुर्म भी माफ हो जाता है, क्योंकि पागल को क्या दोष देना? वह ठीक कर ही नहीं सकता था, तो गलत करने के लिए जिम्मेवार भी नहीं रह जाता।
एक बात: कि जिस स्थिति में पाप हो सकता है, वह वही स्थिति है, जिसमें पुण्य भी हो सकता था। नहीं तो पाप नहीं हो सकता है। जो ऊर्जा पाप बन सकती है, वही ऊर्जा पुण्य भी बन सकती है। इसलिए कामवासना का जो विरोध किया है जानने वालों ने, उसका कारण दूसरा है। न जानने वालों ने विरोध को पकड़ लिया, उसका कारण दूसरा है। जानने वालों ने इसलिए कहा है कि तुम कामवासना में मत पड़ों, ताकि तुम्हारी काम—ऊर्जा परमात्मा की तरफ प्रवाहित हो सके। इसमें कामवासना की निंदा नहीं है, केवल उसका महत्तर उपयोग है। सच पूछें तो इसमें उसकी महत्ता है। क्योंकि कामवासना में पड़ कर तुम संसार में प्रवेश कर जाओगे, और गहन अंधकार में। अगर तुम कामवासना में न पड़ी, तो यही ऊर्जा ऊपर चढने की सीढ़ी बन जाएगी।
तो जो सीढ़ी तुम्हें ऊपर ले जा सकती हो, उसको तुम नीचे की यात्रा पर मत लगाओ। इसमें सम्मान है, अपमान नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि कामऊर्जा परमसत्य तक ले जा सकती है। और तुम उसे व्यर्थ मत खो देना। लेकिन रुग्ण लोगों ने उसका जो अर्थ लिया, उन्होंने अर्थ लिया कि कामवासना के शत्रु हो जाओ। वे सीढ़ी ऊपर की तरफ तो लगाते नहीं, सीढ़ी नीचे की तरफ भी नहीं लगाते! वे सीढ़ी कंधे पर ले कर घूमते रहते हैं, वे सीडी लगाते ही नहीं!
ऊपर की तरफ लगाओ, बहुत सुखद है, परमआनंदपूर्ण है। ऊपर की तरफ न लगा सको, तो कंधे पर ले कर मत घूमो। क्योंकि उससे तुम सिर्फ रुग्ण हो रहे हो और बोझ ढो रहे हो। कामवासना के विरोध के कारण जीवन का भी अपमान हो गया हमारे मन में। क्योंकि जीवन उसी से तो उठता है, जीवन उसी से तो जगता है। जीवन कामवासना का ही तो फैलाव है।
प्रेम छुप छुप कर करना पड़ता है, कहीं भाव है कि पाप है। अगर प्रेम पाप है, तो प्रेम से पैदा होने वाले बच्चे पुण्य नहीं हो सकते।
साधना सूत्र
ओशो
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