व्यक्ति जब भी अपने निज धर्म को भूलता है, तब ऐसी हालत हो जाती है, जैसे
गुलाब का फूल कमल होना चाहे। जब व्यक्ति निज धर्म को भूलता है, तो उसका
मतलब, वह कोई और होना चाहता है, जो नहीं है।
ब्राह्मण शूद्र होना चाहे, शूद्र क्षत्रिय होना चाहे, क्षत्रिय वैश्य
होना चाहे। जन्म की बहुत फिक्र नहीं है–गुण-धर्म से, गुण-कर्म से। भीतर की
जो क्षमता है, वह जब अपने से भिन्न कुछ होना चाहे, तो मुश्किल में पड़ जाती
है। हो नहीं सकती। वह असंभव है। वह प्रकृति का नियम नहीं।
हम सब अपनी बिल्ट-इन योजना लेकर पैदा होते हैं। हम क्या हो सकते हैं,
इसका ब्लू प्रिंट हमारे सेल-सेल में छिपा रहता है। हम क्या हो सकते हैं,
इसकी तजवीज हम अपने जन्म के साथ लेकर पैदा होते हैं।
अगर दुर्घटना घट जाए, तो यह हो सकता है कि हम वह न हो पाएं, जो हम हो
सकते थे। लेकिन ऐसी घटना कभी नहीं घट सकती कि हम वह हो जाएं, जो कि हम नहीं
हो सकते थे।
इसे मैं फिर से दोहरा दूं, यह हो सकता है कि हम वह न हो पाएं, जो कि हम
हो सकते थे। हम चूक सकते हैं अपनी नियति। लेकिन इससे उलटा नहीं होता कभी,
नहीं हो सकता कभी, कि हम वह हो जाएं, जो कि हम नहीं हो सकते थे।
यह हो सकता है, गुलाब का फूल गुलाब का फूल भी न हो पाए। लेकिन यह नहीं
हो सकता कि गुलाब का फूल, और कमल का फूल हो जाए। गुलाब का फूल अगर कमल होने
की कोशिश में लगे, तो मैंने कहा, इसके दो पहलू हैं। एक पहलू कि वह कमल कभी
न हो पाएगा। कमल होने की चेष्टा में विषाद को उपलब्ध होगा–दुख, पीड़ा,
एंग्विश।
सोरेन कीर्कगार्ड ने इस विषाद का ठीक-ठीक चित्रण किया है। उसने जो
शब्दों के प्रयोग किए हैं, वह खयाल में ले लेने जैसे हैं, ट्रेंबलिंग। वह
कहता है कि जब आदमी विषाद में होता है, तो सारा हृदय एक कंपन हो जाता है,
एक ट्रेंबलिंग। वह कहता है, जब आदमी विषाद में हो जाता है, तो ड्रेड पकड़
लेता है, जैसे मौत सामने खड़ी हो और हमारे भीतर भी सब मृत्यु के भय में,
अंधकार में डूब जाए।
यह जो स्थिति है विषाद की–एंग्विश कहता है सोरेन कीर्कगार्ड–संताप की,
जहां कुछ भी फिर प्रीतिकर नहीं लगता, कुछ भी अर्थपूर्ण नहीं लगता,
अभिप्रायपूर्ण नहीं लगता; सब व्यर्थ, मीनिंगलेस, सांयोगिक लगता है। हैं, तो
ठीक। न हों, तो कोई हर्ज नहीं मालूम पड़ता। बल्कि न हों, तो शांति मालूम
पड़ती है। हों, तो अशांति मालूम पड़ती है।
गुलाब का फूल कमल होना चाहे, तो ऐसा होगा, एक पहलू। और दूसरा पहलू यह कि
गुलाब की ताकत अगर कमल होने की कोशिश में लग जाए, तो गुलाब फिर गुलाब कभी
नहीं हो पाएगा। क्योंकि ताकत सीमित है, क्षमता निश्चित है। ऊर्जा बंधी हुई
मिली है प्रत्येक को, नपी हुई मिली है प्रत्येक को। अगर उसे इतर, यहां-वहां
खर्च किया, तो अपनी नियति को पूरा नहीं किया जा सकता।
गीता दर्शन
ओशो
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