अभी-अभी मैं एक चीनी साध्वी का जीवन पढ़ता था। वह एक गांव में गई थी। उस गांव
में थोड़े-से मकान थे। उसने उन मकानों के सामने जाकर--सांझ हो रही थी, रात पड़ने को थी, वह अकेली साध्वी थी--उसने लोगों से कहा
कि 'मुझे घर में ठहर जाने दें।' अपरिचित स्त्री। फिर उस गांव में जो लोग रहते थे, वह उनके धर्म के मानने वाली नहीं थी। लोगों ने अपने दरवाजे बंद कर लिए। दूसरा
गांव बहुत दूर था। और रात, और अकेली। उसे उस रात एक खेत में जाकर
सोना पड़ा। वह एक चेरी के दरख्त के नीचे जाकर चुपचाप सो गई।
रात दो बजे उसकी नींद खुली। सर्दी थी, और सर्दी की वजह से उसकी नींद खुल गई।
उसने देखा, फूल सब खिल गए हैं और दरख्त पूरा फूलों
से लदा है और चांद ऊपर आ गया है। और बहुत अदभुत चांदनी है। और उसने उस आनंद के
क्षण को अनुभव किया।
सुबह वह उस गांव में गई और उन-उन को धन्यवाद दिया, जिन्होंने रात्रि द्वार बंद कर लिए थे। और उन्होंने पूछा, 'काहे का धन्यवाद!' उसने कहा,
'तुमने अपने
प्रेमवश, तुमने मुझ पर करुणा और दया करके रात अपने
द्वार बंद कर लिए, उसका धन्यवाद। मैं एक बहुत अदभुत क्षण को
उपलब्ध कर सकी। मैंने चेरी के फूल खिले देखे और मैंने पूरा चांद देखा। और मैंने
कुछ ऐसा देखा जो मैंने जीवन में नहीं देखा था। और अगर आपने मुझे जगह दे दी होती, तो मैं वंचित रह जाती। तब मैं समझी कि उनकी करुणा कि उन्होंने क्यों मेरे लिए
द्वार बंद कर रखे हैं।'
यह एक दृष्टि है, एक कोण है। आप भी हो सकता था उस रात
द्वार से लौटा दिए गए होते। तो शायद आप इतने गुस्से में होते रातभर और उन लोगों के
प्रति इतनी आपके मन में घृणा और इतना क्रोध होता कि शायद आपको जब चेरी में फूल
खिलते, तो दिखाई नहीं पड़ते। और जब चांद ऊपर आता, तो आपको पता नहीं चलता। धन्यवाद तो बहुत दूर था,
आप यह सब अनुभव
भी नहीं कर पाते।
जीवन में एक और स्थिति भी है, जब हम प्रत्येक चीज के प्रति धन्यवाद से
भर जाते हैं। साधक स्मरण रखें कि उन्हें इन तीन दिनों में प्रत्येक चीज के प्रति
धन्यवाद से भर जाना है। जो मिलता है, उसके लिए धन्यवाद। जो नहीं मिलता, उससे कोई प्रयोजन नहीं है। उस भूमिका में अर्थ पैदा होता है। उस भूमिका में
भीतर एक निश्चिंतता पैदा होती है और एक सरलता पैदा होती है।
ध्यानसूत्र
ओशो
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