Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Thursday, April 28, 2016

संन्यास का जन्म

मृत्यु की पहचान से ही संन्यास का जन्म हुआ, ध्यान का जन्म हुआ। यदि मृत्यु है तो कुछ आयोजन करने होंगे। अगर मिट ही जाना है; और यहां जो हमने कमाया है, सब छिन जाएगा, सब पड़ा रह जाएगा, तो कुछ ऐसा भी कमाना चाहिए जो मृत्यु में साथ जाए। यहां के तो संगी संबंधी सब दूर खड़े रह जाएंगे; पहुंचा देंगे मरघट तक, फिर लौट जाएंगे उन्हें अभी और जीना है। अभी उनके बहुत काम अधूरे पड़े हैं। एक दिन उनके काम ऐसे ही अधूरे पड़े रह जाएंगे जैसे तुम्हारे पड़े रह गए। लेकिन अभी उन्हें बोध नहीं, अभी होश नहीं। लोग मरघट पर भी जाते हैं किसी की चिता जलाने तो वहां भी संसार की ही बातें करते हैं, वहां भी बैठकर बाजार की ही बातें करते हैं। वहां भी अफवाहें गांव की...उन्हीं अफवाहों में तल्लीन होते हैं। उधर किसी की लाश जल रही है, वे पीठ किए गपशप करते हैं।

वे गपशप तरकीबें हैं, वे उस मृत्यु के तथ्य को झुठलाने के उपाय हैं। वे नहीं देखना चाहते कि जो कल तक जिंदा था, आज जिंदा नहीं है। वे नहीं देखना चाहते जो कल हम जैसा चलता था, हम जैसा ही लड़ता था, हम जैसा ही जीवन की हजार हजार कामनाओं से भरा था, आज राख हुआ जा रहा है। वे घबड़ाते हैं, उनके हाथ पैर कंपे जाते हैं। यह तथ्य वे स्वीकार नहीं कर सकते कि ऐसे ही एक दिन हम भी गिरेंगे और मिट्टी में खो जाएंगे।

अगर इस तथ्य को तुम स्वीकार कर लो करना ही पड़े, अगर थोड़ा भी विवेक हो तो करना ही पड़े, थोड़ा भी बोध हो तो करना ही पड़े इस तथ्य की स्वीकृति के साथ ही तुम नए होने लगोगे; क्योंकि फिर तुम्हें जीवन और ही ढंग से जीना होगा। ऐसे जीना होगा कि मृत्यु आए उसके पहले तुम्हारे पास कुछ हो जो मृत्यु छीन सके ध्यान हो, प्रार्थना हो, प्रभु की थोड़ी अनुभूति हो, समाधि का थोड़ा अनुभव हो, थोड़ी आत्मा की सुवास उठे! क्योंकि देह ही मरती है, आत्मा नहीं मरती। दीया ही टूटता है, ज्योति तो उड़ जाती है फिर नए दीयों की तलाश में। पिंजड़ा ही जलता है, पक्षी तो उड़ जाता है।

मगर इस पक्षी की पहचान कहां? इस हंस की पहचान कहां? तुम तो देह से जुड़े जी रहे हो, ऐसे कि तुमने पूरा तादात्म्य कर लिया है, मानते हो यही देह मैं हूं, और इसी देह के आयोजन में संलग्न हो। और मैं तुमसे यह भी नहीं कहता कि देह का तिरस्कार करो, यह भी नहीं कहता कि देह का अनादर करो। वह भी प्रभु की भेंट है; उसका सम्मान करो, उसका स्वागत करो। देह मंदिर है उसका। लेकिन मंदिर में ही मत खो जाओ, मंदिर में छिपी मूर्ति को भी तलाशो।

कठोपनिषद 

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts