हर व्यक्ति
अनुकूल पैदा
होता है।
प्रकृति से ही
पैदा होता है, इसलिए
अनुकूल होगा
ही। लेकिन हम
किसी व्यक्ति
को उसकी निसर्गता
में स्वीकार
नहीं करते। हम
उस पर आदर्श
ढालते हैं। हम
लोगों से कहते
हैं कि महावीर
बन जाओ, बुद्ध
बन जाओ, कुछ
न बने तो कम से
कम विवेकानंद
बन जाओ! लेकिन
आपको पता है
कि महावीर
दुबारा पैदा नहीं
होते? अभी
पच्चीस सौ साल
में तो नहीं
पैदा हुए; हालांकि
कई लोगों ने
समझाया अपने
बेटों को कि महावीर
बन जाओ। कोई
आदमी इस जमीन
पर दुबारा पैदा
हुआ है, ऐसी
आपको खबर है? कोई राम, कोई
कृष्ण, कोई
बुद्ध--कोई
कभी दुबारा
पैदा हुआ है?
हर
आदमी अनूठा
पैदा होता है।
और हम आदर्श
देते हैं उसको
कुछ होने के
कि तू यह हो जा!
कठिनाई है मां-बाप
की,
क्योंकि
उनको भी पता
नहीं कि घर
में जो पैदा हुआ
है, वह
क्या हो सकता
है। किसी को
भी पता नहीं।
अभी तो वह जो
पैदा हुआ है, उसको भी पता
नहीं कि वह
क्या हो सकता
है। सारा जीवन
अज्ञात में
विकास है। तो
मां-बाप की
बेचैनी यह है
कि कोई ढांचा
क्या दें वे?
तो जो पहले लोग हो चुके हैं चमकदार, उनका ढांचा देते हैं कि तुम ऐसे हो जाओ। वह ढांचा फांसी बन जाता है। और वह ढांचा ही प्रकृति के प्रतिकूल ले जाने का कारण हो जाता है।
फिर हम ढांचे में ढाल कर व्यक्तियों को खड़ा कर देते हैं। वे फंसे हुए लोग हैं, जिनके चारों तरफ लोहे की जंजीरें हैं सख्त। उनमें से निकलना मुश्किल है। जब तक मनुष्यता यह स्वीकार न कर ले कि प्रत्येक व्यक्ति अनूठा है, और किसी की कापी न है और न हो सकता है। दो व्यक्ति समान नहीं हैं; हो भी नहीं सकते; होना भी नहीं चाहिए। अगर आप कोशिश करके राम हो भी जाएं, तो आप एक बेहूदा दृश्य होंगे, और कुछ भी नहीं। राम का होना तो एक बात है, आपका होना सिर्फ नकल होगा। झूठे होंगे आप। सच्चे राम होने का कोई उपाय नहीं। कारण? क्योंकि सच्चे राम होने के लिए बड़ी कठिनाई है। कठिनाई क्या है? यह नहीं कि राम होना बड़ा कठिन है। राम बिना कोशिश किए हो गए, इसलिए बहुत कठिन तो मालूम नहीं होता। या कि बुद्ध होना बहुत कठिन है? बुद्ध बिना कोशिश किए हो गए; कोई बहुत कठिन नहीं है। कठिनाई दूसरी है।
एक-एक व्यक्ति इतिहास, समय और स्थान के ऐसे अनूठे बिंदु पर पैदा होता है, उस बिंदु को दुबारा नहीं दोहराया जा सकता। वह बिंदु एक दफा आ चुका, और अब कभी नहीं आएगा। इसलिए कोई आदमी दोहर नहीं सकता। इसलिए सब आदर्श खतरनाक हैं।फिर हम किसी व्यक्ति को स्वीकार नहीं करते हैं। हम सब का अहंकार है भीतर; वह सिर्फ अपने को स्वीकार करता है और अपने अनुसार सबको चलाना चाहता है। इस दुनिया में सबसे खतरनाक और अपराधी लोग वे ही हैं, जो अपने अनुसार सारी दुनिया को चलाना चाहते हैं। इनसे महान अपराधी खोजने कठिन हैं; भला आप उनको महात्मा कहते हों। आपके कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
जब भी मैं कोशिश करता हूं कि किसी को मेरे अनुसार चलाऊं, तभी मैं उसकी हत्या कर रहा हूं। मेरे अहंकार को तृप्ति मिल सकती है कि मेरे अनुसार इतने लोग चलते हैं; लेकिन मैं उन लोगों को मिटा रहा हूं।
इसलिए वास्तविक धार्मिक गुरु आपको आपके निसर्ग की दिशा बताता है; आपको अपने अनुसार नहीं चलाना चाहता। आपको कहता है कि आप अपने अनुसार ही हो जाएं, और इस होने के लिए जो भी त्यागना पड़े और जो भी मुसीबत झेलनी पड़े, वह झेल लें। क्योंकि सब मुसीबतें छोटी हैं, अगर उस आनंद का पता मिल जाए, जो स्वयं के अनुसार होने से मिलता है। सब मुसीबतें छोटी हैं; उसकी कोई कीमत नहीं है। सब मुसीबतें आसान हैं।
ताओ उपनिषद
ओशो
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