राम
के बिना सावन
सहा नहीं जाता।
राम अर्थात्
परम प्यारा।
नाम कुछ भी दो।
अल्लाह कहो, राम
कहो, रहीम
कहो, जो भी
नाम देना हो, वह परम
प्यारा है।
जिसके बिना सब
फीका है, जिसके
बिना हम हैं
तो लेकिन नहीं
जैसे हैं।
जिसके बिना हम
खाली—खाली हैं।
जिसके बिना
हमारा कोई
मूल्य नहीं।
जिसके बिना हम
जीते जरूर हैं,
मगर जीना
नाममात्र का
जीना है। सच
कहो तो मरते
ही हैं। जिसके
बिना हम जीते
नहीं। बस मौत
ही करीब आती
है और हाथ
लगता क्या है?
रोज— रोज
थोड़ा—थोड़ा
मरते जाते हैं।
चल किस तरफ
रहे हो? पहुँचोगे
कहाँ? बस
मौत में पहुँच
जाते हो। यह
भी कोई जिंदगी
हुई?
जिंदगी
की परिभाषा
क्या है? जिंदगी
की परिभाषा है
कि जो महा
जिंदगी में ले
जाए। जीवन अगर
सच्चा है, तो
उसका अंतिम फल
महा जीवन होगा।
लेकिन इस जीवन
का फल तो
मृत्यु होती
है, यह कैसा
जीवन! यह जीवन
होगा ही नहीं।
कहुाईं कुछ
भूल हो गयी।
कहीं कुछ चूक
हो गयी। कुछ—का—कुछ
समझ बैठे हैं।
परमात्मा के
साथ के बिना
कोई जीवन नहीं
है। उसके साथ
है जीवन। उसके
विरोध में है
मृत्यु। उससे
जो अलग है, वह
मरेगा। जो
उसके साथ है, कभी नहीं
मरेगा।
जीसस
का एक प्यारा
वचन है। आओ, मेरे
साथ हो जाओ, क्योंकि जो
मेरे साथ हैं
वे कभी नहीं
मरेंगे। जो
मेरे साथ हैं,
उनकी कोई
मृत्यु नहीं
है। जीसस क्या
कह रहे हैं? जीसस यह कह
रहे हैं आदमी
दो ढंग से जी
सकता है। एक
ढंग है अलग—
अलग, अहंकार
की भाँति, मैं
की भाँति, परमात्मा
के विरोध में,
असहयोग में,
परमात्मा
से भिन्न। ऐसे
ही अधिक लोग
जीते हैं।
उनके जीवन का
केंद्र मैं है।
मैं ऐसा कर
लूँ, मैं
वैसा हो जाऊँ,
मैं वह पा
लूँ, उनकी
अपनी कुछ
मर्जी है, कोई
आकांक्षा है
जिसे वे पूरी
करना चाहते
हैं। वे
दुनिया को
दिखा देना
चाहते हैं कि
मैं कौन हूँ।
वे यहाँ
हस्ताक्षर कर
जाना चाहते
हैं पत्थरों
पर खुद तो मिट
जाएँगे लेकिन
नाम रह जाएगा।
समय की रेत पर
वे चिह्न छोड़
जाना चाहते
हैं। पागल हैं
वे, क्योंकि
रेत पर कहीं
कोई चिह्न
छूटे हैं? आएँगी
हवाएँ और
चिह्न मिट
जाएँगे। यहाँ
पत्थर भी रेत
हो जाते हैं।
यहाँ नाम भी
पत्थरों पर
लिखोगे तो
कितनी देर
टिकेगा? और
इस शाश्वत की
विराट
व्यवस्था में
तुम्हारे नाम—धाम
का छूट जाना
सब फिजूल है, सब सपना है।
मगर अहंकार
ऐसे ही जीता
है कि मैं कुछ
कर जाऊँ, कुछ
दिखा जाऊँ, मैं कुछ हो
जाऊँ।
संतो मगन भया मन मेरा
ओशो
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