युधिष्ठिर बैठे हैं अपने अज्ञातवास, वनवास के समय। छिपे हैं, वेशभूषा
बना रखी है, किसी को पता नहीं है कि कौन हैं–कुटी के सामने बैठे हैं! भीम
एक कोने में बैठा हुआ कुछ सोच रहा है। एक भिखारी आया और उसने युधिष्ठिर को
कहा, कुछ भीख मिल जाए। युधिष्ठिर ने कहा कि तू कल आ जाना। भीम एकदम उछल कर
खड़ा हो गया और नाचने लगा और भीतर घर की तरफ दौड़ा। युधिष्ठिर ने पूछा कि
तुझे क्या हो रहा है।
तो भीम ने कहा कि मैं खबर करने जा रहा हूं कि मेरे भाई ने समय पर विजय
पा ली। मैं यही सोच रहा था कि यह समय क्या है? और तुमने कहा कि कल आ जाना!
एक बात तो पक्की है–कि तुम्हें पक्का है कि कल आएगा, तो मैं जरा गांव में
खबर कर आऊं कि मेरे भाई ने समय पर विजय पा ली है। युधिष्ठिर भागे, उस
भिखारी को लौटाया, और कहा, तू आज ही ले जा, क्योंकि कल का सच में ही, कहां
भरोसा।
कल के लिए क्या उपाय है कि हम कुछ तय कर सकें? जो टालता है, वह अपने को
धोखा देता है। जो कल पर छोड़ता है, वह बेईमान है। किसी और से बेईमानी नहीं
कर रहा, अपने से ही बेईमानी कर रहा है।
अगर कल आपके हाथ में हो तो स्थगित करना, और कल अगर हाथ में न हो, तो
स्थगित मत करना। और अगर स्थगित ही करना हो कल के लिए तो बुराई के लिए करना;
क्योंकि कल कभी नहीं आता। क्रोध करना हो तो कहना, कल करेंगे। चोरी करना हो
तो कहना, कल करेंगे। गर्दन किसी की काटनी हो तो कहना, कल काटेंगे। फिर
तुमसे पाप हो ही नहीं सकेंगे। क्योंकि कल कभी नहीं आता। जो ठीक करना हो,
शुभ करना हो, तो वह अभी कर लेना। अगर उसे कल पर टाला, तो वह भी नहीं हो
सकेगा।
समाधी के सप्तद्वार
ओशो
No comments:
Post a Comment