मैं नसरुद्दीन की कहानी निरंतर कहता रहता हूं। एक सम्राट की पत्नी से
उसका प्रेम है। रात चार बजे वह विदा हो जाता है और अब दूसरे गांव जा रहा
है। तो वह उससे कहता है कि तेरे बिना मैं कैसे रह सकूंगा! एक-एक पल बिताना
मुश्किल हो जाएगा। तुझसे ज्यादा सुंदर, तुझसे ज्यादा प्रेमी कोई भी नहीं
है। वह स्त्री उसकी ये बातें सुनकर रोने लगी है। नसरुद्दीन ने लौटकर देखा,
उसने कहा कि माफ कर, ये बातें मैंने दूसरी स्त्रियों से भी कही हैं। ये
बातें मैंने दूसरी स्त्रियों से भी कही हैं। उनसे भी मैंने यही कहा है कि
तेरे बिना पल भर न रह सकूंगा, लेकिन मैं हूं। और मैं रहूंगा, क्योंकि कल
मुझे फिर किसी स्त्री से कहने का मौका आ सकता है। और यह तो मैंने सभी
स्त्रियों से कहा है कि तुमसे ज्यादा सुंदर कोई भी नहीं है। वह स्त्री बहुत
नाराज हो जाती है, वह बहुत दुखी हो जाती है। नसरुद्दीन कहता है, मैं तो
सिर्फ मजाक करता हूं। वह फिर खुश हो जाती है।
अब यह जो आदमी है नसरुद्दीन, यह आदमी समझ सकता है कि जिंदगी अभिनय है।
यह आदमी पहचान सकता है कि जिंदगी अभिनय है। लेकिन यह स्त्री को पहचानना बड़ा
मुश्किल पड़ जाएगा कि जिंदगी अभिनय है। ऐसा नहीं है कि अभिनय होने से
जिंदगी कुछ खराब हो जाती है। सच तो यह है कि अभिनय होने से जिंदगी बड़ी कुशल
हो जाती है। इसलिए कृष्ण कहते हैं, योग तो कर्म की कुशलता है। असल में जब
जिंदगी अभिनय हो जाती है, तो दंश चला जाता है, पीड़ा चली जाती है, कांटा चला
जाता है, फूल ही रह जाता है, जब अभिनय ही करना है तो क्रोध का किसलिए
करना, पागल हैं? जब अभिनय ही करना है तो प्रेम का ही किया जा सकता है।
क्रोध का अभिनय करने का क्या प्रयोजन है? जब अभिनय ही करना है तो फिर क्रोध
का सिर्फ पागल अभिनय करेंगे। जब अभिनय ही करना है तो प्रेम का ही हो सकता
है। जब सपना ही देखना है तो दीनता-दरिद्रता का क्यों देखना, सम्राट होने का
देखा जा सकता है।
अपने कृत्यों को झांक-झांकर देखने से धीरे-धीरे पता चलता है कि मैं
अभिनय कर रहा हूं। पिता का अभिनय कर रहा हूं, बेटे का अभिनय कर रहा हूं,
मां का अभिनय कर रहा हूं, पत्नी का अभिनय कर हां हूं, पति का अभिनय कर रहा
हूं, प्रेमी का अभिनय कर रहा हूं, मित्र का अभिनय कर रहा हूं। यह दिखाई
पड़ना चाहिए। इसको आप एक-एक कृत्य को “एटामिकली’, एक-एक को अणु में पकड़ लें,
और देखें कि क्या हो रहा है। और आप बहुत हंसेंगे। और हो सकता है, बाहर
आंसू गिर रहे हों और भीतर हंसी आनी शुरू हो जाए कि यह मैं क्या कर रहा हूं!
हो सकता है, बाहर कुछ और हो रहा हो, भीतर कुछ और होना शुरू हो जाए। और
तत्काल आप इस स्थिति को समझ पाने में समर्थ होते चले जाएंगे। जैसे-जैसे यह
साफ होगा, वैसे-वैसे जिंदगी अभिनय हो जाएगी।
कृष्ण स्मृति
ओशो
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