पश्चिम में एक फकीर था अभी, गुरजिएफ। सारी ईसाइयत का इतिहास यह कहता है
कि जुदास ने जीसस को मरवाया, जुदास ने जीसस को तीस रुपयों में बेचा, और
जुदास जीसस का दुश्मन है। क्योंकि जुदास…जो आदमी मरवा दे, वह दुश्मन तो है।
प्रश्न: शिष्य नहीं था वह?
शिष्य था, लेकिन दगाबाज था। बिट्रे किया, धोखा दिया, और जीसस
को बिकवा दिया और जीसस को सूली उसी वजह से लगी। उसने ही पकड़वाया रात को
आकर। जीसस रात में ठहरे हुए हैं और जुदास लाया है दुश्मन के सिपाहियों को
और जीसस को पकड़वा दिया है। तो जुदास से ज्यादा गंदा नाम ईसाइयत के इतिहास
में दूसरा नहीं है। यानी किसी आदमी को गाली देनी हो तो जुदास कह दो। तो
इससे बड़ी कोई गाली नहीं है। जीसस को फांसी लगवाने से बड़ा और बुरा हो भी
क्या सकता है?
लेकिन गुरजिएफ पहला आदमी है, जिसने कहा, यह बात सरासर झूठी है। जुदास
दुश्मन नहीं है, जीसस का दोस्त है। और पकड़वाने में जीसस का षडयंत्र है,
जुदास का नहीं। यानी जीसस चाहते हैं कि पकड़े जाएं और सूली पर लटकाए जाएं।
और जुदास उनका सेवक है। और इतना बड़ा सेवक है कि जब जीसस उसे कहते हैं कि तू
मुझे पकड़वा, तो उनके बाकी शिष्यों की किसी की हिम्मत नहीं है इस काम को
करवाने की। लेकिन जुदास तो सेवक है, वह कहता है: आपकी आज्ञा! जुदास जीसस को
पकड़वा देता है।
तो गुरजिएफ ने सबसे पहले यह कहा कि मैं उन गहराइयों से इस बात की खोज,
आपको खबर देता हूं कि जुदास दुश्मन नहीं है और जुदास जैसा मित्र पाना
मुश्किल है कि जो कि मरवाने तक की आज्ञा को मानने को चुपचाप शिरोधार्य कर
ले और चला जाए। इसीलिए…सारी ईसाइयत कहती है कि जुदास के पैर पड़े ईसा ने,
पकड़े जाने के पहले। ईसाइयत कहती है, कितना अदभुत था जीसस कि जो पकड़वा रहा
था, उसके पैर छुए, पैर धोए।
गुरजिएफ कहता है कि पैर पड़ने योग्य था आदमी जुदास। ऐसा आदमी खोजना
मुश्किल है कि जिसने इसमें भी इनकार न किया–जब जीसस ने कहा कि तू मुझे
पकड़वा दे और मेरी फांसी लगवानी जरूरी है। अगर मेरी फांसी नहीं लगती तो जो
मैं कह रहा हूं, वह खो जाएगा। मेरी फांसी लगती है तो सील-मोहर हो जाएगी। और
मेरी फांसी ही अब मेरा काम कर सकती है और कोई उपाय नहीं है। तो तू मुझे
फांसी लगवा दे।
फांसी से बचाने वाले मित्र खोजना आसान है, फांसी लगवाने वाला मित्र
खोजना बहुत मुश्किल है। लेकिन जब गुरजिएफ ने पहली दफा यह बात कही, तो यह
बड़ी मुश्किल का मामला हो गया। और सारी ईसाइयत ने बड़ा विरोध किया कि यह क्या
बकवास है? यह तुम क्या कहते हो? यह तो हमारा सब हिसाब पलट गया। यह तो बात
ही ठीक नहीं है। लेकिन एक आदमी हिम्मत जुटा कर नहीं आया कि आकर कोशिश करता
कि यह आदमी कहता कहां से है। लेकिन मैंने प्रयोग किए और मैं हैरान हुआ कि
वह ठीक कहता है: जुदास दुश्मन नहीं है, जुदास ही दोस्त है। वह फकीर ठीक
कहता है, वह गलत कहता ही नहीं बिलकुल। मगर बड़ी मुश्किल से खोज पाया होगा,
क्योंकि सारा का सारा…।
तो मेरा कहना है कि शास्त्र खोज का रास्ता तो है ही नहीं, बल्कि सबसे
बड़ी रुकावट है, क्योंकि माइंड को ऐसी बातों से भर देता है जो कि हो सकता है
नहीं भी हों। और तब उनसे नीचे उतरना, उनके विपरीत जाना, भिन्न जाना ही
मुश्किल हो जाता है। एकदम मुश्किल हो जाता है।
इसलिए क्रास मूल्यवान बन गया। क्रास का मूल्य, जीसस से ज्यादा मूल्यवान क्रास हो गया।
लेकिन इस कारण न तो मैं कहता हूं कि मान लेना कि मैंने कही, और न कहता
हूं कि इसलिए इनकार कर देना कि पहली दफे किसी ने कही। अगर सच में ही प्रेम
हो तो खोज पर निकलना।
महावीर मेरी दृष्टि में
ओशो
No comments:
Post a Comment