मैंने
सुना है : अपनी
मम्मी के
प्रसूति
क्लिनिक में
प्रतीक्षा
करता हुआ
नन्हा मुन्ना
सामी अपना ' होमवर्क ' करने
में व्यस्त था।
जब वह मम्मी
से मिला तो
उसने पूछा— '' मम्मी! मेरा
जन्म कैसे और
कहां से हुआ?
उसने
उत्तर दिया—’‘ आह
डार्लिंग,
सफेद परों
वाला स्ट्रोक
पक्षी
तुम्हें इस दुनिया
में लाया।’’
''
और आप कहां
से जन्मीं
मम्मी?''
''
ओह! स्ट्रोक
पक्षी मुझे भी
इस दुनिया में
लाया।’’
''
और दादी
कहां से आईं?''
''
क्यों, तेरी
दादी तो स्ट्राबेरी
की झाड़ी के
नीचे पाई गई।’’
कदम उठना ही चाहिए। बीज से प्रारम्भ कर सुवास तक की यात्रा ही विकास है।
लेकिन बहुत अधिक लोग, सेक्स के दोहराने वाले चक्र में ही जीते हैं: वे एक ही दिनचर्या के साथ परिभ्रमण करते रहते हैं। वे बिना सजग हुए वही चीजें, जिनके बारे में उन्हें स्वयं यह होश नहीं कि वे एक ही चीज को जाने कितनी अधिक बार कर चुके हैं, और बिना सजग हुए कि उनसे कुछ भी नहीं मिला, वे उन्हें किए चले जा रहे हैं। लेकिन वे, बिना यह जाने हुए कि उन्हें उसके अलावा और क्या करना चाहिए बस उन्हीं चीजों को किए चले जा रहे हैं। वे लोग एक ही चक्राकार मार्ग पर घूमते हुए व्यस्त बने रहते हैं। यही कारण है कि हम पूरब में इसे 'संसार' या चक्र कहते हैं। यह संसार एक चक्र के नाम से ही पुकारा जाता है। ठीक वैसे ही जैसे एक पहिया घूमे चला जाता है तो उसकी वही तानें घूमती हुई ऊपर नीचे आती—जाती हैं, यदि तुम्हारा जीवन भी एक पहिए जैसा ही है तो वही चीजें बार बार घूम कर आती जाती हैं, इस तरह तुम्हारे जीवन का कोई अर्थ होगा ही नहीं क्योंकि अर्थ तो केवल तभी होता है, जब तुम स्वयं अपने ही पार कोई कदम उठाते हो। और यह भी स्मरण रखना यदि तुम पार के लिए कोई कदम उठाते हो तब तुम वहां भी जाकर जड़ हो जाते हो, और अर्थ फिर खो जाता है।
आनंदयोग
ओशो
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