समाधि जैसे दीपक
की लौ, जैसे नागिन का फन। समाधि जैसे चटके कली, जैसे लहके चमन। समाधि जैसे उमड़े घटा, जैसे फूटे किरन। गत्यात्मकता, ऊर्जा, प्रवाह,
जीवंतता।
परमात्मा कोई ठहरी हुई चीज नहीं। परमात्मा .शाश्वत प्रवाह है। इसीलिए तो परमात्मा
जीवन है। परमात्मा पत्थर नहीं है, परमात्मा फूल है। समाधि को जानो तो ही
जान पाओगे।
मैं राजी तुम्हें समाधि में ले चलने को हूँ, तुम बाहर बाहर से मत पूछो। मैं कुछ कहूँगा, तुम कुछ समझोगे। तुम बाहर बाहर से
पूछोगे तो चूकोगे। आओ, भीतर आओ,
द्वार खुले हैं, दस्तक भी देने की कोई जरूरत नहीं है, आओ, भीतर आओ। और अगर तुम जरा हिम्मत करो इस
देहली के पार होने की, तो तुम जान लोगे समाधि क्या है। समाधि
स्वयं का मिट जाना और परमात्मा का आविर्भाव है। समाधि समाधान है। इसलिए समाधि कहते
हैं उसे। सारी समस्याओं का समाधान। फिर कोई समस्या न रही, कोई प्रश्न न रहा, कोई चिंता न रही; सब शांत हो गया; सब प्रश्न गिर गये, सब समस्याएँ तिरोहित हो गयीं, एक शून्य रह गया। लेकिन उसी शून्य में
पूर्ण उतरता है। तुम शून्य बनो, पूर्ण उतरने को तत्पर बैठा है। तुम्हारी
तरफ से समाधि शून्य है, परमात्मा की तरफ से समाधि पूर्ण है।
लेकिन एक बात
स्मरण रखना सदा, जो भी समाधि के संबंध में कहा जाए मै भी
जो कह रहा हूँ, वह भी सम्मिलित है वह सभी कामचलाऊ है।
पूछा है तो कह रहा हूँ। पूछा है तो कहना पड़ता है। लेकिन जो है, कहने में नहीं आता है। जो हूऐ, वह जानने में आता है, अनुभव में आता है। मैं कुछ कहूँगा, शब्दों का उपयोग करना पड़ेगा। शब्द में
लाते ही वह जो विराट आकाश था समाधि का, सिकुड़ कर बहुत छोटा हो गया। और यह बड़ी
असंभव बात है।
एक छोटा बच्चा
किताब पढ़ रहा था। इतिहास की किताब और उसने पढ़ा नेपोलियन का यह प्रसिद्ध वचन कि
संसार में असंभव कुछ भी नहीं, वह खिल खिला कर हँसने लगा। उसके बाप ने
पूछा क्या बात है? तू किताब पढ़ रहा है कि हँस रहा है? उसने' कहा मैं इसलिए हँस रहा हूँ कि यह इसमें
लिखा है संसार में असंभव कोई बात नहीं। पिता ने भी कहा ठीक ही कहा है, संसार में असंभव कोई बात नहीं है। लड़के ने कहा फिर रुको, मैने आज ही सुबह एक काम करके देखा है जो बिल्कुल असंभव है। बाप ने कहा: कौन सा
काम? उसने कहा मैं लाता हूँ अभी। वह भागा, स्नानगृह से जाकर टूथपेस्ट उठा लाया और उसने कहा इसमें से पहले टूथपेस्ट निकालो, फिर भीतर करो, यह असंभव है नेपोलियन के जमाने में
टूथपेस्ट नहीं होता होगा। इसलिए मुझे हँसी आ गयी,
क्योंकि सुबह ही
मैंने बहुत कोशिश की, लाख कोशिश की मगर फिर भीतर नहीं जाता।
समाधि का अर्थ
है पहले मन से बाहर आओ; टूथपेस्ट निकाल लिया। अब समाधि के संबंध
में बताने का मतलब है टूथपेस्ट को फिर भीतर करो,
फिर शब्दों में
लौटो; असंभव है। शायद टूथपेस्ट तो किसी तरह से
आ भी जाए, कोई उपाय बनाए जा सकते हैं, लेकिन शब्द के बाहर जाकर समाधि का अनुभव होता है, फिर शब्द के भीतर: उसको लाना असंभव है। इशारे हो सकते हैं। वही इशारे मैंने
किये।
संतो मगन भया मन मेरा
ओशो
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