एक दुकानदार के पास बहुत ही सुंदर तोता था। वह तोता उस दुकानदार की
हमेशा मदद करता था। वह दुकान पर आने वाले, ग्राहकों का दिल बहलाता, और
दुकानदार की अनुपस्थिति में दुकान की देख रेख भी करता था।
एक दिन जब वह दुकानदार किसी काम से बाहर गया हुआ था और तोता ऊपर बैठा
हुआ दुकान की निगरानी कर रहा था, उसी समय दुकानदार की बिल्ली बिना किसी
पूर्व सूचना के एक चूहे पर जाकर झपटी। वह तोता भय के मारे दुकान में इधर से
उधर उड़ने लगा। और उसके उड़ने से बादाम के तेल का बर्तन गिर गया।
जब वह दुकानदार वापस लौटा और उसने यह सब दृश्य देखा तो आगबबूला हो गया।
उसने क्रोध में एक छड़ी उठायी और तोते के सिर पर तब तक मारता गया, जब तक
उसकी खोपड़ी के सारे पंख नहीं निकल गए।
बेचारा गंजा तोता एक कोने में जाकर चुपचाप बैठ गया। और कई दिन तक वह कुछ
बोला नहीं। अब दुकानदार को अपने किए पर बहुत पश्चात्ताप हो रहा था। उसने
अपने तोते साथी को मनाने की बहुत कोशिश की। इसके लिए उसने अपने ग्राहकों की
भी मदद ली।
लेकिन उसकी सभी कोशिशें बेकार गईं, वह तोता नहीं बोला तो नहीं बोला।
एक दिन जब तोता रोज की तरह चुपचाप बैठा हुआ था, तो एक गंजा दरवेश दुकान
में आया। तोता आकर काउंटर पर बैठ गया और बोला, ‘अच्छा, तो आपने भी बादाम के
तेल का बर्तन गिरा दिया था।’
तोता समझा कि वह दरवेश भी इसलिए गंजा हुआ है, क्योंकि उसने भी बादाम के
तेल का बर्तन गिरा दिया होगा। अब वहा पर एक दरवेश आया, जो कि गंजा था, तो
तत्क्षण उस तोते ने अपने अनुसार उसकी व्याख्या कर डाली।
हम वही भाषा समझ पाते हैं, जिसे हम ने अब तक जाना समझा होता है।
संबुद्ध व्यक्ति में कहीं कोई अहंकार नहीं होता न ही उसमें कोई विनम्रता
भी होती है। विनम्रता तो परिष्कृत अहंकार ही है। जब अहंकार मिट जाता है,
तो विनम्रता भी मिट जाती है।
संबुद्ध व्यक्ति जानता है कि वह कौन है, इसलिए उसे किसी प्रकार के झूठे
व्यक्तित्व को ओढ़े रखने की कोई आवश्यकता नहीं होती। तुम्हें तो अहंकार पहले
चाहिए होता है, वरना तो तुम कहीं किसी भीड़ में खो गए होते। तुम्हारा
अहंकार के बिना जीना मुश्किल हो गया होता। जब तक व्यक्ति अज्ञानी रहता है,
तब तक अहंकार की आवश्यकता होती है। लेकिन जब व्यक्ति संबुद्ध हो जाता है,
बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाता है, तब अहंकार अपने से ही गिर जाता है।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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