दुनिया में धर्म
के कम होने का और कोई कारण नहीं है, धैर्य का कम हो जाना है। क्योंकि धैर्य
धर्म की आधारभूत जड़ है। सिर्फ धैर्यवान ही धार्मिक हो सकता है। क्योंकि इस जगत में
और सब चीजें नगद हैं। धर्म बिलकुल ही दिखाई नहीं पड़ता, हाथ से स्पर्श में नहीं आता, तिजोरी में बंद नहीं किया जा सकता, बैंक—बैलेंस में नहीं रखा जा सकता, कोई सेफ डिपाजिट में बंद करके ताला लगाकर
घर में आराम से सोया नहीं जा सकता। धर्म एकमात्र ऐसी चीज है कि जिसके पास धैर्य हो, वही उसकी खोज के लिए राजी हो सकता है।
और धर्म के साथ
बडी कठिनाई यह है कि वह टुकड़ों में नहीं मिलता है कि अभी एक इंच मिल गया, कल दो इंच मिल गया, तो थोड़ी आशा बंधी रहती है। अधैर्यवान को
भी बंधी रहती है कि कोई फिक्र नहीं, आज एक रुपया मिला, तो कल दो भी मिल सकते हैं। कल दो मिले, तो परसों चार भी मिल सकते हैं। जब चार
मिलते हैं, तो अरब भी मिल सकते हैं। नहीं, धर्म या तो मिलता है तो मिलता है, नहीं मिलता है तो नहीं मिलता है। दोनों
के बीच कोई बंटवारा नहीं होता। जिस दिन मिलता है,
एकदम मिल जाता
है, विस्फोट हो जाता है उसका। और जब तक नहीं मिला,
तब तक कुछ भी
नहीं होता। घनघोर अंधकार ही बना रहता है।
उस अंधकार के
क्षण में जिनके पास धैर्य नहीं है, वे कुछ और खोजने लगते हैं जो अभी मिल
सकता है। वे कंकड़ पत्थर बीनने लगते हैं, जो अभी मिल सकते हैं, यहीं पड़े हैं। धन खोजने लगते हैं, यश खोजने लगते हैं, जो मिल सकता है, जिसकी ज्यादा दूरी नहीं मालूम पड़ती, यह रहा....। और एक सुविधा है जगत की सब चीजों में कि आप उनको फ्रैगमेंट्स में, इंसटालमेंट्स में, हिस्सों में हैं पा सकते हैं। धर्म को आप किश्तों में नहीं पा सकते।
मैं मृत्यु सीखाता हूँ
ओशो
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