परममानव के पास
एक ही गुण है : वह इतना निर्दोष है जैसे कोई नवजात शिशु। और वह किसी भी प्रकार के
बोझ से नितांत स्वतंत्र है, चाहे वह धन—दौलत का हो अथवा ज्ञान का हो
अथवा सद्गुणों का हो अथवा संतत्व का हो। उसको पूरा आकाश ही उपलब्ध है, क्योंकि वह निर्भार है और वह सुदूरतम सितारों तक उड़ सकता है; पूरा अस्तित्व ही उसका क्षेत्र बन जाता है। एक अर्थों में कुछ भी उसका नहीं है, और एक दूसरे अर्थों में सब कुछ केवल उसका ही है। लेकिन वह मालिकियत का दावा
नहीं करता कोई जरूरत नहीं है, सब कुछ उसका है।
मालिकियतपना
सदैव ही शक्ति की निशानी है, और शक्ति केवल गरीबी, हीनता सूचित करती है। केवल हीन व्यक्ति श्रेष्ठ होना चाहता है, क्योंकि हीनता के साथ जीना कठिन है। हीन व्यक्ति धन—दौलत पाना चाहता है, राज्य पाना चाहता है, ज्ञान पाना चाहता है, धार्मिक व्यक्ति बनना चाहता है, लेकिन किसी ढंग से वह अपनी हीनता को
छिपाना चाहता है ताकि वह उसके बारे में सब कुछ भूल सके। वह एक खुली किताब नहीं है; खुली किताब होने की उसकी सामर्थ्य नहीं है। वह बहुत छिपाऊ है, क्योंकि वह जानता है कि वह क्या छिपा रहा है अपने भीतर।
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