अतीत की स्मृतियों को और भविष्य की परिकल्पना को गिर जाने दो। यहीं और
अभी में जीओ। और इसका आदत से कोई संबंध नहीं है। केवल आदतवश तुम अभी और
यहीं में कैसे जी सकते हो? आदत आती है अतीत से आदत तुम्हें अतीत की ओर
धकेलती है, अतीत की ओर खींचती है। या तो तुम आदत को ही एक अनुशासन बना सकते
हो लेकिन तब तुम भविष्य के लिए सोच रहे होते हो। तुम प्रतीक्षा करते हो:
‘आज मैं आदत का निर्माण करूंगा और कल मैं उसका आनंद उठाऊंगा।’ लेकिन फिर
तुम भविष्य में ही जी रहे होते हो।
आदत का प्रश्न ही नहीं है, इसका आदत से कोई संबंध नहीं है। बस, जागरूक
हो जाओ। अगर खाना खा रहे हो, तो खाना ही खाओ सिर्फ खाना ही खाओ। खाने में
पूरी तरह से तल्लीन हो जाओ। अगर प्रेम कर रहे हो, तो शिव हो जाओ और अपनी
संगिनी को देवी हो जाने दो। प्रेम करो और सभी देवताओं को देखने दो और आने
दो और जाने दो किसी की कोई चिंता मत लो। जो कुछ भी तुम करो अगर सड़क पर चल
रहे हो, तो बस चलो भर! हवा का, सूरज की धूप का, वृक्षों का आनंद लो वर्तमान के क्षण में जीओ, उसका आनंद मनाओ।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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