कबीर
कपड़ा ही बुनते
रहे, कपड़ा
बुनते-बुनते
पा गए। गोरा
कुम्हार
मिट्टी के घड़े
ही पकाता रहा,
घड़े
पकाते-पकाते
पा गया। रैदास
चमार जूते बनाता
रहा, जूते
बनाते-बनाते
पा गया। तो
कुछ अड़चन नहीं
है। तुम जहां
हो उस कृत्य
को परमात्मा
को समर्पित कर
दो। और अब
किसी नैतिक
कारण से नहीं,
बल्कि
ध्यान के आधार
से जीयो। और
फिर थोड़ा याद
रखो, कभी
थोड़ी भूल-चूक
हो जाए तो
इतना शोरगुल न
मचाओ। जीवन को
एक नाटक समझो।
अब
एक डाक्टर है, मरीज को
कैंसर हुआ है,
उदाहरण के
लिए तुमसे कह
रहा हूं: अगर
वह मरीज को
बता दे कि
तुझे कैंसर
हुआ है तो वह
जो तीन महीने
में मर रहा था,
तीन दिन में
मर जाएगा।
डाक्टर सच
बोले कि झूठ? अच्छा हुआ
कि रोशन
डाक्टर नहीं
हैं। न मालूम
कितने मरीजों
को मार डालते!
सच बोले कि
झूठ? अगर
सच बोलता है
तो यह मरीज
जितने दिन
जिंदा रह सकता
है उतने दिन
भी जिंदा नहीं
रहेगा। और वह
भी बड़ी बात
नहीं कि तीन
महीने जीया कि
छह महीने जीया,
वह कोई बड़ी
बात नहीं, मरना
तो है ही; मगर
जितने दिन
जीयेगा, अगर
इसे पता चल
गया कि कैंसर
है तो नरक में
जीयेगा उतने
दिन। उस सब का
जुम्मा किस पर
होगा? सत्यवादी
डाक्टर पर। ये
राजा
हरिशचंद्र! इन
पर जुम्मा
होगा उसका। नहीं,
डाक्टर
कहता है: कोई
फिक्र न करो, सब ठीक हो
जाएगा, कोई
खास मामला
नहीं है, सर्दी-जुकाम
है। और
कभी-कभी ऐसा
हो जाता है कि यह
सर्दी-जुकाम
कहना ही ठीक
होने का आधार
बन जाता है।
कभी-कभी ऐसा
हो जाता है कि
यह आदमी निश्चिंत
हो गया, कि
अरे
सर्दी-जुकाम
है। और हो सकता
है इसके कैंसर
के पीछे तनाव
और अशांति ही कारण
रही हो। इसको
कहीं भीतर शक
रहा हो कि कैंसर
तो नहीं है? आज-कल सभी को
शक होता है।
जरा ही कुछ
हुआ कि कैंसर
का शक होता
है। हो सकता
है उसी शक और
तनाव और परेशानी
के कारण इसको
कैंसर पैदा
हुआ हो। अगर चिकित्सक
ने मुस्कराकर
कह दिया कि
कुछ मामला ही
नहीं है, सर्दी-जुकाम
है, कुछ
दिन में ठीक
हो जायेगा।
दवा तो
चिकित्सक करेगा
कैंसर की, वह
दवा तो जारी
रहेगी; मगर
इस आदमी के
चित्त से तनाव
का बोझ उठ
गया। क्या तुम
सोचते हो
परमात्मा के
सामने इस
डाक्टर पर झूठ
बोलने का
इल्जाम लगेगा?
तो फिर तुम
समझे नहीं। तो
फिर तुम जीवन
का राज नहीं
समझे।
जिंदगी
कुछ गणित जैसी
साफ-सुथरी
नहीं है। जिंदगी
काव्य जैसी
है। उसे एकदम
जोर से पकड़ोगे
तो मुश्किल
में पड़ जाओगे, हाथ में जो
भी आएगा, कंकड़-पत्थर
आयेंगे, जीवन
के असली राज
छूट जायेंगे।
जिंदगी को इतनी
ज्यादा जिद्द
से न पकड़ो।
झूठ एकदम सदा
ही बुरा नहीं
होता। कुछ तो
बड़े प्यारे
झूठ होते हैं।
सहजयोग
ओशो
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