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Tuesday, March 1, 2016

आत्‍म स्मरण

तुम अपने को स्मरण नहीं करते। हो सकता है तुम लाखों चीजों का स्मरण करो, लेकिन तुम निरंतर भूलते चले जाते हो स्वयं को, जो तुम हो। गुरजिएफ के पास एक विधि थी। उसने इसे पाया पतंजलि से। और वस्तुत:, सारी विधियां पतंजलि से चली आती हैं। वे विशेषज्ञ थे विधियों के। स्मृति है स्मरण जो कुछ तुम करो उसमें स्वस्मरण बनाये रहना। तुम चल रहे हो गहरे में स्मरण रखना कि ‘मैं चल रहा हूं कि ‘मैं हूं। ‘ चलने में ही खो मत जाना। चलना भी है वह गति, वह क्रिया; और वह आंतरिक केंद्र भी है। गति, क्रिया और आंतरिक केंद्र मात्र सजग, देखता हुआ साक्षी।


लेकिन मन में दोहराओ मत कि मैं चल रहा हूं। अगर तुम दोहराते हो, तो वह स्मरण नहीं है। तुम्हें निःशब्द रूप से जागरूक होना है कि ‘मैं चल रहा हूं मैं खा रहा हूं मैं बोल रहा हूं मैं सुन रहा हूं। जो कुछ करते हो तुम, उस भीतर के ‘मैं’ को भूलना नहीं चाहिए, यह बना रहना चाहिए। यह अहं बोध नहीं है। यह आत्‍मबोध है। मैं - बोध अहंकार है; आत्‍मा का बोध है अस्मिता शुद्धता, सिर्फ मैं हूं इसका होश।


साधारणत: तुम्हारी चेतना किसी विषय वस्तु की ओर लक्षित हुई रहती है। तुम मेरी ओर देखते हो; तुम्हारी संपूर्ण चेतना मेरी ओर बह रही है एक तीर की भांति। तो तुम मेरी ओर लक्षित हो। आत्मस्मरण का अर्थ है, तुम्हारे पास द्विलक्षित तीर होगा। इसका एक हिस्सा मुझे देख रहा हो, दूसरा हिस्सा अपने को देख रहा हो। द्वि लक्षित तीर है स्मृति, आत्‍म स्मरण।


पतंजलि योगसूत्र 


ओशो 
 

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