.... और कुछ भी नहीं। मैं हूं, इस भ्रांति में
तुम पड़े कि परमात्मा दिखाई पड़ना बंद हो जाता है। अहंकार पीड़ा देता है।
क्योंकि तुम अस्तित्व से टूट जाते हो। और सारा आनंद अस्तित्व के साथ लयबद्ध
होने में है, छंदबद्ध होने में है। अस्तित्व के महासंगीत में जब तुम भी एक
कड़ी होते हो, एक स्वर बनते हो; जब अस्तित्व के महासागर में तुम भी एक लय
होते हो, एक तरंग होते हो, भिन्न नहीं, विपरीत नहीं; जब तुम अस्तित्व के
साथ रास में होते हो, महारास, नाचते हो; जब तुम में और अस्तित्व में कोई
इंच भर विरोध नहीं होता, संघर्ष नहीं होता, द्वंद्व नहीं होता; जब तालमेल
इतना गहरा होता है कि तुम हो, इसका पता ही नहीं चलता, परमात्मा ही है, बस
इसका ही पता चलता है; वही है, उसका ही विस्तार है; मुझ में भी वही फैला है,
औरों में भी वही फैला है, जब इसकी प्रतीति होती है, तो आनंद की वर्षा हो
जाती है, अमृत के झरने फूट पड़ते हैं। मगर उसके पहले अहंकार की पीड़ा झेलनी
जरूरी है। उसके पहले टूटना जरूरी है। अपने घर आने के पहले अपने घर से भटक
जाना जरूरी है। ये बातें विरोधी मालूम पड़ेंगी मगर वस्तुतः विरोधी नहीं हैं।
जीसस ने कहा है : धन्य हैं वे जो छोटे बच्चों की भांति हैं, क्योंकि
प्रभु का राज्य उन्हीं का है। लेकिन छोटे बच्चे? सभी तो छोटे बच्चों की
भांति पैदा होते हैं। छोटे बच्चों को तो कोई प्रभु का राज्य मिला हुआ मालूम
नहीं होता। छोटे बच्चे तो जल्दी जल्दी बड़े होना चाहते हैं। शीघ्रता से बड़े
होना चाहते हैं। और जीसस कहते हैं: धन्य हैं वे जो छोटे बच्चों की भांति
हैं! वचन का खयाल रखना। छोटे बच्चे नहीं कह रहे हैं जीसस, छोटे बच्चों की
भांति। इस भांति में सारा रहस्य छिपा है। छोटे बच्चे नहीं हैं जो, हैं तो
बड़े, उम्र तो बहुत हो गई है, बूढ़े हैं, लेकिन छोटे बच्चों की भांति पुनः हो
गए हैं। फिर लौट कर वर्तुल पूरा हो गया है। जब पैदा हुए थे जैसे निर्दोष,
अब मरती घड़ी में फिर वैसे निर्दोष हो गए हैं। वे प्रभु के राज्य में प्रवेश
पा जाएंगे। पा ही गए। यह अस्तित्व उनके लिए प्रभु का राज्य ही बन जाता है।
राम दुवारे जो मरे
ओशो
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