सत्य के जगत में तुम आकांक्षा से नहीं जा सकोगे। क्योंकि सभी आकांक्षा
संसार में लौटा लाती है। तो महावीर कहते हैं, अगर तुम स्वर्ग की आकांक्षा
से सत्य की खोज करो, चूक जाओगे। क्योंकि स्वर्ग की खोज फिर संसार की ही खोज
है। परिमार्जित, सुधरे हुए संस्कार–संसार का ही संस्करण है वह। यहीं जो
सुख नहीं मिल पाये हैं, उनका ही बढ़ा-चढ़ा रूप है, फैला विस्तार है। जो शराब
यहां नहीं पी, वहां बहिश्त में उसके झरने बहाये हैं–वह तुम्हारी ही कल्पना
है। जो स्त्रियां यहां उपलब्ध नहीं हो सकीं, वहां अप्सराओं की तरह बैठी
तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं! इतना ही नहीं, अगर तुम किसी वृक्ष के नीचे
ध्यान वगैरह करो, तो उर्वशी और मेनका आकर तुमको परेशान करेंगी। तुम्हारी
प्रतीक्षा कर रही हैं बिलकुल कि तुम कब करो तपश्चर्या कि वे आयें। यह
वासना, अतृप्त वासना ही, नये-नये विक्षेप कर रही है। यह अतृप्त वासना का ही
विस्तार है।
जिन सूत्र
ओशो
जिन सूत्र
ओशो
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